'कश्मीर फाईल्स': प्रतिहिंसा को उकसाने के मकसद से निर्मित देश—हित विरोधी फिल्म

 


'कश्मीर फाईल्स' नामक उक्त फिल्म 'आईडिया आफ इंण्डिया' के खिलाफ मौजूद पाकिस्तान प्रायोजित आतंकी षड़यंत्र की बजाय केवल मुस्लिम विरोध हेतु आम जनता को मानसिक रूप से तैयार करने के लिए बनाई या बनवाई गई एक देश हित विरोधी फिल्म है जोकि पूरी तरह से एकपक्षीय है तथा देश की एकता,अखंडता एवं विकास हेतु आत्मघाती व विनाशकारी माहौल को प्रोत्साहित करती है। फिल्म के अधिकांश प्रमुख कलाकार वास्तविक जीवन में भाजपा से जुड़े नेता ,कार्यकर्ता ,लाभार्थी या समर्थक हैं।

फिल्म को एकपक्षीय इसलिए कहा गया है क्योंकि कश्मीर में केवल कश्मीरी पंडितों के साथ ही आतंकवादियों ने खूनी खेल नहीं खेला था , वरन् कश्मीर में हर उस शक्स को निशाना बनाया है जो कि 'आईडिया आफ इंण्डिया', भारतीय ध्वज व भारतीय संविधान की बात करता है, फिर चाहे वो पंडित हों, गैर पंडित हिन्दु हों, सिक्ख हों और या फिर खुद मुस्लिम ही क्यों ना हों । 

एक आरटीआई संदर्भ के मुताबिक पिछले 30 सालों में 89 कश्मीरी पंडितों की हत्या की गई हैं, वहीं  करीब 1500 गैर पंडित हिन्दु एवं करीब 1800 मुस्लिम भी पाक समर्थक आतंकवादियों की गोलियों के शिकार हुए हैं। 

मारे गये सभी लोगों का दोष सिर्फ इतना था कि वो 'आईडिया आफ इंण्डिया',भारतीय झंडे और भारतीय संविधान के साथ खड़े थे। 

लेकिन खास मकसद से बनाई या बनवाई गई इस फिल्म की विषय—वस्तु का केन्द्र बिन्दु क्या है ? विषय वस्तु का केन्द्र बिन्दु है सिर्फ कश्मीरी पंडित और एकमात्र विलन कौन हैं सिर्फ मुसलमान, वो भी कोई एक या कुछ नहीं ,सारे के सारे । फिल्म में एक भी ऐसे किस्से का जिक्र नहीं किया गया है जिसमें स्थानीय मुसलमानों ने हिन्दुओं को बचाया हो,जबकि कश्मीर के तत्कालीन इतिहास में ऐसे अनगिनत किस्से मौजूद हैं।

इतना ही नहीं 'कश्मीरी पंडितों ' के अलावा बाकी मारे गये गैर पंडित हिन्दु, सिक्ख और मुस्लिम पर फिल्म पर एक शब्द भी नहीं कहा गया है, आखिर वे कौन थे ? क्या उनकी जान व कुर्बानी 'भारत माता' समर्थकों के लिए कोई मायने नहीं रखती, क्या वो 'भारत माता' की संतान नहीं थे ? क्या वो सब भारतीय नहीं थे ?  

यहाँ एक बात और ध्यान देने वाली है और वो ये कि ये फिल्म अपने मनगढंत कथानक के माध्यम से देश भर में मुसलमानों के खिलाफ़ प्रतिहिंसा का माहौल तैयार करना चाहती है। लोगों को मानसिक रूप से हिंसा के लिए उकसा रही है,झूठ का तड़का लगाकर 30 साल पुराने घाव को हरा कर रही है,फिल्म 1990 के तत्कालीन परिस्थितियों , तत्कालीन राज्यपाल जगमोहन तथा दिल्ली में बैठी केन्द्र सरकार की सहयोगी पार्टी भारतीय जनता पार्टी को बड़ी ही चालाकी से बचा लेती है। 

ध्यान रहे कश्मीरी पंडितों के सबसे बड़े नेता एवं भाजपा समर्थक 'डॉ.अग्निशेखर' ने अमित शाह द्वारा संसद में कश्मीरी पंडितों के पलायन पर दिए गए बेबुनियाद तर्कों पर आपत्ति जताई थी और ध्यान दिलाया था कि 1989 से पहले तक कश्मीर शांत था,कश्मीर के आंतरिक हिस्से किसी भी प्रकार के आतंकवाद व अलगाववाद से अछूते थे। 19 जनवरी 1990 को जो जब कश्मीरी पंडितों का पलायन हुआ तब भारत के गृहमंत्री मु्फ्ती मोहम्मद सईद थे जोकि भाजपा एवं लेफ्ट समर्थित वी.पी.सिंह सरकार में गृहमंत्री के पद पर विराजमान थे। कश्मीरी पंडितो पर अत्याचार व पलायन के बावजूद 10 नवम्बर 1990 तक यानी पलायन के 10 माह बाद तक 85 सांसदों वाली भाजपा ने वी.पी.सिंह सरकार का समर्थन जारी रखा और जब समर्थन वापस भी लिया था तो मुद्दा 'कश्मीरी पंडितों का पलायन' नहीं था बल्कि मुद्दा था 'राम मंदिर के लिए की जा रही रथयात्रा पर रोक लगाना '।  


फिल्म में एक खास मकसद से पाकिस्तान व उसके द्वारा प्रायोजित आतंकवाद की बजाय सारे के सारे मुस्लिमों को धूर्ततापूर्ण तरीके से टार्गेट करना सत्य से परे,तर्कहीन, अनैतिक ,अन्यायपूर्ण एवं भारतीय संविधान की मूलभावना के विपरीत है। 

इतना ही नहीं ​जिन कश्मीरी पंडितों के अत्याचारों पर इस फिल्म को केन्द्रित किया गया है, इस फिल्म ने उनकी भावनाओं को सिर्फ भुनाने का कोशिश की है। फिल्म 'कश्मीरी पंडितों' की मुसीबत को बढ़ाने वाली है,ना कि उनका कोई हित करने वाली। 'कश्मीरी पंडित' स्वयं इस फिल्म से नाखुश हैं, उनका मानना है कि फिल्म ने उनके दर्द को बेचकर उनकी मुसीबतों को बढ़ा दिया है,क्योंकि फिल्म सभी स्थानीय मुस्लिमों को विलन के रूप में दिखाती है जबकि ऐसा नहीं हैं, आज भी उनके बच्चे कश्मीर में मुस्लिमों के घरों में ही रह रहे हैं। ऐसी एकपक्षीय फिल्में अपना व्यापार कर रही हैं,पार्टीयां अपनी राजनैतिक रोटियां सेक रही हैं,तथा आम कश्मीरी विस्थापितों की घर वापसी के सपने को मुश्किल से और मुश्किल बनाने में जुटी हैं। उनका मानना है कि विस्थापन व जुल्म के शिकार केवल कश्मीरी पंडितों ही नहीं हैं वरन् सिक्ख व मुस्लिम भी हैं। मुद्दा पाक प्रायोजित आतंकवाद है,जिसे फिल्म हिन्दु—मुस्लिम के रूप में प्रदर्शित करके नफरत फैला रही है। पहले हमें कहा धारा 370 के हटेगी तब घर वापसी होगी। आज धारा 370 हटने के करीब पौने तीन साल बाद भी विस्थापितों के पुर्नवास की ठोस नीति बनाने की बजाय सरकार विस्थापन के घाव को हरा करने वाली व आपसी नफरत को बढ़ाने वाली फिल्म के माध्यम से कश्मीरी विस्थापितों की समस्या का हल करना चाहती है,लगता है जैसे सरकार पूरी तरह फेल हो गई है और कश्मीरी विस्थापितों की भावनाओं से खेल रही है।

धारा 370 पर नेहरू को कोसने वाली भाजपा के ही सबसे वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवानी ने अपनी पुस्तक 'माई कंट्री माई लाईफ' के पेज नम्बर 679 में एक छुपाया गया सच लिखा है कि जब संविधान सभा में धारा—370 पास हुई उस दौरान पं.नेहरू विदेश में थे,यही नहीं कांग्रेस के लगभग सभी नेता इस प्रावधान के विरोध में थे परन्तु सरदार पटेल ने मामले की गम्भीरता को समझते हुए विरोधी कांग्रेसी नेताओं को समझाया तथा इस धारा को संविधान सभा में पास करवाया ।

यदि फिल्म के अनुसार सभी मुस्लिम विलन हैं तो हमारे कुछ सवाल हैं ————

(1) बारामूला निवासी मोहम्मद मकबूल शेरवानी कौन है ? जिसने 1947 में पाकिस्तान के आक्रमण के समय पाकिस्तानी सेना को गुमराह करके 5 दिन तक श्रीनगर तक नहीं पहुँचने दिया ताकि भारतीय सेना को वहाँ पहुंचने का समय मिल सके । मकबूल शेरवानी ने ईनाम में पाकिस्तान की सेना की ओर से 14 गोलियाँ खाई थी। ध्यान रहे इसी मो.मकबूल शेरवानी की कुर्बानी ने भारतीय सेना को पाकिस्तानियों को एलओसी तक खदेड़ने में सक्षम बनाया था, यही कारण है कि इसी मौ.मकबूल शेरवानी की कब्र पर भारत की सेना प्रतिवर्ष फूल चढ़ाती है, सेना की एक पत्रिका के कवर पेज पर इसका फोटो छपा था और इसी मॉ.मकबूल शेरवानी के बारे में 'अमिताभ मट्टू' नामक कश्मीरी पंडित ने ही लिखा था कि ' मौ.मकबूल शेरवानी की कुर्बानी को भुलाया नहीं जा सकतां'

(2) 1971 के भारत—पाक युद्ध में पूर्वी पाकिस्तान को बांग्लादेश बनाने में बेहद महत्वपूर्ण योगदान देने वाला हाशिम कुरैशी कौन हैं जिन्होने पाकिस्तानी जेलों में वर्षों आईएसआई की यातनाएं झेली और आज भी कश्मीर में जिंदा हैं। हाशिम कुरैशी के बारे में भारतीय खूफिया एजेंसी 'रा' के अधिकारी आर.एस.यादव ने अपनी पुस्तक के पेज—227 में सारा वाकिया लिखा है। 'रा' अधिकारी के अनुसार 'आई सी गंगा' विमान अपहरण काण्ड 1971 में भारतीय खूफिया एजेंसी 'रा' के मुख्य सहयोगी कोई ओर नहीं 'हाशिम कुरैशी' थे, जी हाँ एक कश्मीरी मुसलमान । याद रहे इसी काण्ड का मुद्दा बनाकर भारत ने पाकिस्तान के विमानों के लिए भारत का एयरस्पेस बंद कर दिया था तथा युद्ध के समय पाकिस्तान व पूर्वी पाकिस्तान के बीच संचार व रसद को कट कर दिया था । उल्लेखनीय है कि  हाशिम कुरैशी का बेटा जुनैद कुरैशी संयुक्त राष्ट्र संघ में पाकिस्तान के खिलाफ भारत का प्रतिनिधित्व कर चुका है।

(3) शोपियान निवासी लेफ्टीनेंट उमर फयाज कौन थे जिनकी हत्या आतंकवादियों ने तब की जब वो अपनी बहन की शादी में शरीक होने गए थे।

(4) स्काई अंतराष्ट्रीय ओलम्पिक में भारत की ओर से स्वर्ण पदक जीतने वाली कश्मीरी लड़की 'हनाया निसार' कौन है ? जिसकी स्टोरी इंण्डिया टुडे,आज तक सहित सम्पूर्ण भारतीय मीड़िया ने कवर की व स्वयं प्रधानमंत्री मोदी ने मन की बात में जिसका जिक्र किया।

(5) भारतीय सेना व इन्टेलीजेंस को गुप्त सूचनाएं देने वाले वो स्थानीय मुसलमान कौन हैं जो अपनी जान जोखिम में डालकर भी भारतीय सेना के साथ और आतंकवादियों के खिलाफ खड़े रहते हैं।

(6) आरटीआई जानकारी के अनुसार पिछले 30 साल में कश्मीरी पंडितों की हत्या के मामले में मात्र एक व्यक्ति को सजा मिली है । मामला है हृदयनाथ मंजू हत्याकाण्ड केस । इस केस में भी जो मुख्य गवाह था वो भी एक मुस्लिम ही था। 

ऐसा नहीं है कि हमें 'कश्मीरी पंडितों' के साथ हुए जुल्म का दु:ख नहीं है, हम भी 'कश्मीरी पंडितों' के साथ उनके दु:ख दर्द में कंधे से कंधा मिलकार खड़े हैं । 

लेकिन हम केवल कश्मीरी पंडितों के साथ नहीं हैं, हम कश्मीर और देश के हर उस शक्स के साथ हैं जो आईडिया आफ इंण्डिया में,भारतीय ध्वज 'तिरंगें' में और भारतीय संविधान में विश्वास करता है, फिर चाहे वो गैर पंडित हिन्दू हों,सिक्ख हों या मुस्लिम । 

हम अगर खिलाफ हैं तो वो है सिर्फ  ' जुल्म ' व  नफरत की मानसिकता के। 

फिल्म के निर्माता विवेक अग्निहोत्री क्या हैं? उनकी मानसिकता कितनी घटिया, वाहियात व हल्की है इसकी जानकारी आप उनके सोशल मीडिया अकाउन्टस पर उनके ही द्वारा पोस्ट अश्लील व दोहरे अर्थ वाली टुच्ची सामग्री से सहज ही लगा सकते हैं। 

फिल्म पर शहीद स्कवाड्रन लीडर रवि खन्ना की पत्नी वीरांगना शालिनी ने भी आपत्ति जताई है, फिल्म के दृश्य को मनगढंत बताते हुए कहा है कि यह फिल्म उनके पति एवं भारतीय सेना दोनों के शौर्य को अपमानित करती है तथा बिना किसी अनुमति के घटनाओं को तोड़ मरोड़ कर पेश कर रही है।


भारतीय परिपेक्ष्य में लोग फिल्म व फ्रिक्शन में अंतर नहीं समझते हैं,वो फिल्म को ही सबूत की तरह मन में बैठा लेते हैं। अत: फिल्म की एकपक्षीय व नफरती एजेंडे युक्त सामग्री सम्पूर्ण देश  की एकता,अखण्डता,विकास को आहत करने वाली सिद्ध होगी और हो भी रही है।

370 हटे दो साल से अधिक हो गया है फिर भी बदलाव बताने के लिए सरकार के हाथ खाली हैं।    और शायद यही मजबूरी रही है कि प्रधानमंत्री जी सहित भाजपा सरकार से जुडे लोग जनता में  एकपक्षीय अर्धसत्य से सरोबार व देश मे नफरत को प्रोत्साहित करने वाली इस ​विनाशकारी और घटिया फिल्म को अपने राजनीतिक उद्देश्य की पूर्ति के लिए प्रमोट कर रहे हैं तथा देश की जनता को हिंसा की आग में झौंकने के लिए एक मनोवैज्ञानिक माहौल तैयार कर रहे हैं।   

राजनीति अपनी जगह है परन्तु उसके लिए देश में लगातार नफ़रत के बीज बोना किसी भी देशप्रेमी इंसान की समझ से बाहर है। वैसे तो ऐसी सामग्री युक्त समाज में नफ़रत फैलाने वाली  फिल्मों के प्रसारण व प्रदर्शन को रोकने का दायित्व 'फिल्म सेंसर बोर्ड ' का है परन्तु सरकारी नियंत्रण के चलते उससे किसी भी प्रकार की उम्मीद बेमानी है। 

अत: वर्तमान परिस्थिति में भारत के सर्वोच्च न्यायालय को संज्ञान लेकर फिल्म की समीक्षा करनी चाहिए तथा देश की एकता,अखण्डता व विकास को प्रभावित करने वाली सामग्री पाए जाने की स्थिति में फिल्म के प्रदर्शन पर ना सिर्फ सम्पूर्ण देश में बैन लगाया जाना चाहिए वरन् फिल्म के निर्माता,फाईनेन्सरों,प्रमोटरों ,फिल्म सेंसर बोर्ड से जुड़े लोगों एवं सरकार के जिम्मेदार लोगों पर उचित कानून—सम्मत कार्यवाही सुनिश्चित करनी चाहिए। ताकि इस तरह की ​मनगढंत व नफरत व प्रतिहिंसा के माहौल को उकसाने वाली फिल्मों के निर्माण पर रोक लग सके ।  

आज एक खबर में देखा की देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक बयान दिया है कि देश में कश्मीर फाइल्स जैसी और फिल्मों की आवश्यकता है । हम प्रधानमंत्री जी के ऐसे लापरवाह बयान की निंदा करते हैं तथा प्रधानमंत्री जी से अपील करते हैं कि यदि वे अपने खास एजेंडे से जरा भी अधिक इस 'भारत माता' को चाहते हैं तो वो इस प्रकार की फिल्मों के निर्माण की जरूरत वाले अपने बयान को ना सिर्फ वापस लें वरन् पहल करते हुए ऐसी फिल्म पर सरकार के स्तर पर ही रोक लगा दें।

हम जानते हैं कि हमें प्रधानमंत्री जी से इस प्रकार की किसी भी कार्यवाही की उम्मीद बेहद कम है,परन्तु हम अपील कर रहे हैं क्योंकि हम मानते हैं कि वो हमारे प्रधानमंत्री हैं, हमारे मतलब पूरे देश के लोगों के, केवल किसी धर्म , संगठन या पार्टी विशेष के नहीं । 

आप सोच रहे होंगें कि हमारी उम्मीद प्रधानमंत्री जी से आखिर इतनी कम क्यों हैं। तो इसका जवाब फिल्म के निर्माताओं के साथ दिखाई दे रही हमारे प्रिय प्रधानमंत्री जी की वो तसवीरें है जोकि हम अपनी इस पोस्ट के साथ देश की जनता के अवलोकन हेतु शेयर कर रहे हैं। 




यहाँ एक बात और ध्यान देने वाली है और वो कि ऐसी विनाशकारी फिल्म का भारत सरकार में बैठे जिम्मेदार लोग प्रमोट कर रहें हैं,ऐसी फिल्मों की आवश्यकता बता रहे हैं तो इसका मतलब ये है कि उन्हें कुछ तो लाभ होगा । हो सकता है कुछ देशी व विदेशी ताकते इस देश में गृह युद्ध का ख़तरा पैदा करके, शांति स्थापना का बहाना बनाकर देश के लोगों पर धीरे से आपातकाल व तानाशाही थोपने तथा लोकतंत्र व लोकअधिकारों को समाप्त करने की तैयारी कर रहे हों और ऐसी फिल्मों के जरिए जनता को  मानसिक रूप से तैयार कर रही हों। ये भी सम्भव है कि विदेशी ताकतें देशी धूर्तों व मूर्खों के सहयोग से इस अखण्ड देश को विखण्डित करने की ख़तरनाक साजिश को धीरे—धीरे आगे बढ़ा रही हों।

अत: देशवासियों से अनुरोध है कि साजिश को समझो, नफरत में अंधे होकर गुलामी के कुए में मत कूदो। देशहित के भाषणों एवं वास्तविक देशहित के अन्तर को समझो और हाँ देश की परेशानियों के लिए हम सब जिम्मेदार हैं, किसी खास वर्ग या समुदाय को टार्गेट करके हम इस कमजोर पड़ चुके देश को और अधिक कमजोर कर देंगें। नफरत फैलाने वाले दुष्प्रचार से स्वयं को व अपने बच्चों को ही नहीं पूरे देश को बचाओ। देश, देश के लोग और लोगों के नागरिक अधिकार अभूतपूर्व संकट में हैं। 

परमात्मा एक है, जीवन अमूल्य है, जीवन का मकसद सदगुण अपनाकर सतकर्म करना है, ​सतकर्म करने का अवसर भी सीमित समय के लिए है, मृत्यु शाश्वत है । जरा सोचिए! आखिर सत्य और न्याय को त्यागकर हम जीवन में क्या प्राप्त करना चाहते हैं, जब जीवन ही अस्थाई है तो सत्ता तो उससे भी ज्यादा अनिश्चित है। सिकंदर भी खाली हाथ ही गया था और आज के और कल आने वाले सभी सत्ताधीश भी खाली हाथ ही जाएगें ।  सब जानते हैं,मानते भी हैं परन्तु ना जाने नफरतें फैलाकर आखिर ये क्या पाएंगें।

अंत में 

'' इन बातों को समझ सको तो,समझ लो दिलबर जानी, 

धूर्त व मूर्ख कर डालेंगें, देश की खत्म कहानी ''

बस इतनी सी कोशिश करें कि इतिहास में यदि कभी भी हमारा नाम लिया जाए तो नाम आग बुझाने वालों की सूची में होना चाहिए, आग लगाने वालों में कदापि नहीं। इतिहास मतलब इंसानों नहीं परमात्मा द्वारा दर्ज वो विवरण/रिकार्ड जिससे कुछ भी छिपा नहीं है और जो सदैव सत्य ही दर्ज करता है,असत्य कदापि नहीं।

उम्मीद है देश के समस्त नागरिक,सभी दलों के राजनेता व कार्यकर्ता ,प्रशासनिक अधिकारी,न्यापालिका से जुड़े लोग हमारी भावनाओं व विषय की गम्भीरता को समझेंगें । याद रहे देश रहेगा तो हम सब रहेंगें और जब तक ये देश रहेगा हम सब साथ—साथ ही रहेगें। तय हमें करना है कि हम लड़—झगड़ कर रहना चाहते हैं या प्रेम पूर्वक न्यायसंगत तरीके से । जब रहना ही साथ—साथ है तो आखिर हम न्यायपूर्ण तरीके से प्रेम पूर्वक क्यों नहीं रहना चाहते हैं, यदि हम प्रेम पूर्वक रहना चाहते हैं तो नफरतबाजों के खिलाफ बोलते क्यों नहीं हैं, उन्हें प्रत्यक्ष या मौन समर्थन क्यों देते हैं। हम सब जानते हैं कि देश ऐसे नहीं चल सकता है, हमें देश को बचाना है तो नफरत को अपने दिल और दिमाग से हटाना ही होगा।

और हाँ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी अपना 'इतिहास' बनाने के लिए 'भारत' को ही इतिहास बनाने के अपने धूर्ततापूर्ण व मूर्खतापूर्ण एजेंडे से बाहर आओ। 'विकास' अभी भी अजन्मा ही है और विनाश जन्म लेने को तैयार खड़ा है।

न्यायपालिका व न्यायधीशों की आश्चर्यजनक व विनाशकारी चुप्पी इस देश की बर्बादी में सबसे महत्वपूर्ण कारण सिद्ध होगी। अतः देश में चल रहे नफरती एजेंडें व असत्य पर चुप्पी तोड़ो न्यायमूर्ति जी। अब दिया बुझने के कगार पर है।

मेरा देश महान् हो और उसकी महानता में मेरा भी कुछ योगदान हो, इसी सद्इच्छा के साथ मैं अपनी अपनी बात को विराम देता हूँ।


सबका कल्याण हो


जय हिंद!जय भारत!जय जगत।


शुभेच्छु!

अनिल यादव,

सम्पादक,बैस्ट रिपोर्टर न्यूज

संस्थापक सदस्य,सतपक्ष पत्रकार मंच ।

9414349467