प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
सत्यपाल मलिक का जन्म 24 जुलाई 1946 को उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के हिसावदा गांव में एक जाट किसान परिवार में हुआ था। उनके पिता, बुद्ध सिंह, उत्तर प्रदेश के राजस्व विभाग में नायब तहसीलदार थे, लेकिन जब सत्यपाल मात्र डेढ़ वर्ष के थे, तब उनके पिता का देहांत हो गया। इसके बाद उनकी मां उन्हें अपने मायके, हरियाणा के चरखी दादरी ले गईं, जहां उनका प्रारंभिक जीवन बीता। सत्यपाल मलिक ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा हिसावदा के प्राथमिक विद्यालय और ढिकौली के एमजीएम इंटर कॉलेज से पूरी की। बाद में उन्होंने मेरठ विश्वविद्यालय से विज्ञान में स्नातक और एलएलबी की डिग्री हासिल की।
राजनीतिक सफर की शुरुआत
सत्यपाल मलिक ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत 1968-69 में मेरठ विश्वविद्यालय के छात्रसंघ अध्यक्ष के रूप में की। यह वह दौर था जब वह चौधरी चरण सिंह के विचारों से प्रभावित हुए और उनकी अगुवाई वाले भारतीय क्रांति दल (बाद में लोकदल) से जुड़े। 1974 में उन्होंने बागपत विधानसभा सीट से चुनाव जीतकर उत्तर प्रदेश विधानसभा में प्रवेश किया। इसके बाद 1980 से 1989 तक वे लोकदल के टिकट पर राज्यसभा सांसद रहे। 1989 में जनता दल के उम्मीदवार के रूप में उन्होंने अलीगढ़ से लोकसभा चुनाव जीता और 9वीं लोकसभा में सांसद रहे।
मलिक ने अपने राजनीतिक जीवन में कई दलों का दामन थामा। लोकदल, कांग्रेस, जनता दल, समाजवादी पार्टी से होते हुए वे 2004 में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) में शामिल हुए। 2012 में उन्हें बीजेपी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया गया, और 2017 में उन्हें बिहार का राज्यपाल नियुक्त किया गया। इसके बाद वे ओडिशा, जम्मू-कश्मीर, गोवा और मेघालय के राज्यपाल रहे।
जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल के रूप में कार्यकाल
सत्यपाल मलिक का सबसे उल्लेखनीय कार्यकाल जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल के रूप में रहा, जहां वे अगस्त 2018 से अक्टूबर 2019 तक रहे। इस दौरान 5 अगस्त 2019 को भारत सरकार ने अनुच्छेद 370 और 35A को निरस्त करने का ऐतिहासिक निर्णय लिया, जिसके परिणामस्वरूप जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त हुआ और इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों—जम्मू-कश्मीर और लद्दाख—में विभाजित किया गया। मलिक इस महत्वपूर्ण परिवर्तन के दौरान जम्मू-कश्मीर के अंतिम राज्यपाल रहे। उनके कार्यकाल को इस संवेदनशील अवधि में प्रशासनिक दृढ़ता और नीतिगत निर्णयों के लिए हमेशा याद किया जाएगा।
हालांकि, मलिक अपने कार्यकाल के दौरान कई विवादों में भी रहे। उन्होंने 2019 के पुलवामा हमले में सुरक्षा चूक और किरू जलविद्युत परियोजना में कथित भ्रष्टाचार के मुद्दों पर खुलकर बात की। मलिक ने दावा किया कि उन्हें 150-150 करोड़ रुपये की रिश्वत की पेशकश की गई थी, जिसे उन्होंने ठुकरा दिया। इस कारण वे केंद्र सरकार और बीजेपी के कुछ वर्गों के साथ टकराव में आ गए। सीबीआई ने उनके खिलाफ किरू जलविद्युत परियोजना से जुड़े भ्रष्टाचार के मामले में चार्जशीट दाखिल की, जिसे मलिक ने बदले की कार्रवाई करार दिया।
बेबाक बयानों और किसान आंदोलन का समर्थन
सत्यपाल मलिक अपनी स्पष्टवादिता और बेबाकी के लिए जाने जाते थे। उन्होंने केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर कई गंभीर आरोप लगाए, विशेष रूप से किसान आंदोलन (2020-21) के दौरान। मलिक ने तीन विवादास्पद कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का खुलकर समर्थन किया और कई राज्यों में उनके समर्थन में दौरे किए। उन्होंने सरकार से इन कानूनों को वापस लेने की अपील की थी। उनकी यह बेबाकी उन्हें बीजेपी से दूर ले गई, और वे सरकार के मुखर आलोचक बन गए।
मलिक ने अपने एक साक्षात्कार में कहा था कि उन्होंने अपने राजनीतिक गुरु चौधरी चरण सिंह के सिद्धांतों को हमेशा अपनाया और जनता के हितों के लिए लड़े। उनकी यह छवि उन्हें पश्चिमी उत्तर प्रदेश और हरियाणा में किसानों और आम जनता के बीच लोकप्रिय बनाती थी।
स्वास्थ्य और अंतिम दिन
सत्यपाल मलिक पिछले कुछ वर्षों से स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे थे। मई 2025 से वे दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में भर्ती थे, जहां वे गंभीर मूत्र मार्ग संक्रमण (यूरीनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन) और किडनी फेल्यर की जटिलताओं से पीड़ित थे। 7 जून 2025 को उन्होंने अपने सोशल मीडिया अकाउंट ‘एक्स’ पर एक भावुक पोस्ट साझा की, जिसमें लिखा, “मैं पिछले लगभग एक महीने से अस्पताल में भर्ती हूं और किडनी की समस्या से जूझ रहा हूं। मेरी हालत बहुत गंभीर होती जा रही है। मैं रहूं या न रहूं, अपने देशवासियों को सच्चाई बताना चाहता हूं।” इस पोस्ट में उन्होंने अपने 50 वर्षों के सार्वजनिक जीवन की ईमानदारी और संघर्षों का जिक्र किया।
9 जुलाई 2025 को उनके निधन की अफवाहें सोशल मीडिया पर फैलीं, जिनका उनके निजी सचिव कंवर सिंह राणा ने खंडन किया और बताया कि उनकी हालत में सुधार हो रहा है। हालांकि, 5 अगस्त 2025 को उनकी स्थिति अचानक बिगड़ गई, और दोपहर 1:12 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली।
निधन पर शोक और प्रतिक्रियाएं
सत्यपाल मलिक के निधन पर देश भर में शोक की लहर दौड़ गई। उनके पैतृक गांव हिसावदा में ग्रामीणों ने उनकी सादगी और ईमानदारी को याद किया। उनकी बहन ने भावुक होकर कहा, “सोच रही थी हॉस्पिटल जाकर राखी बांधूंगी, हमें छोड़कर चले गए।”
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके निधन पर शोक व्यक्त करते हुए ‘एक्स’ पर लिखा, “सत्यपाल मलिक के निधन से दुखी हूं। इस दुख की घड़ी में मेरी संवेदनाएं उनके परिवार और समर्थकों के साथ हैं। ओम शांति।” विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने भी शोक व्यक्त करते हुए कहा, “मैं उन्हें हमेशा एक ऐसे इंसान के रूप में याद करूंगा, जो आखिरी वक्त तक बिना डरे सच बोलते रहे और जनता के हितों की बात करते रहे।” जेडीयू नेता केसी त्यागी ने इसे अपनी निजी क्षति बताते हुए मलिक के साथ अपने लंबे राजनीतिक सहयोग को याद किया।
परिवार और विरासत
सत्यपाल मलिक की पत्नी, इकबाल मलिक, एक शिक्षिका और पर्यावरणविद् हैं, जबकि उनका बेटा, देव कबीर, एक प्रसिद्ध ग्राफिक डिजाइनर हैं, जिन्होंने बीयर ब्रांड Bira का लोगो डिजाइन किया। मलिक की 300 साल पुरानी हवेली आज भी हिसावदा गांव में मौजूद है, जो उनकी सादगी और ग्रामीण जड़ों की याद दिलाती है।
सत्यपाल मलिक एक ऐसे राजनेता और प्रशासक थे, जिन्होंने अपने सिद्धांतों और बेबाकी के लिए हमेशा अपनी एक अलग पहचान बनाई। चाहे वह जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 के निरसन के दौरान उनकी भूमिका हो, किसान आंदोलन में उनका समर्थन हो, या फिर भ्रष्टाचार के खिलाफ उनकी आवाज, मलिक ने हमेशा जनता के हितों को सर्वोपरि रखा। उनके निधन ने भारतीय राजनीति में एक ऐसी आवाज को खामोश कर दिया, जो सत्ता के सामने कभी नहीं झुकी। उनकी विरासत, खासकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश और जम्मू-कश्मीर में, हमेशा याद की जाएगी।