चुनाव सुधार बिल की खास बातें: जानिये ! वोटर आईडी से आधार जोड़ने का क्यों हो रहा विरोध?


केंद्रीय कानून मंत्री किरण रिजिजू ने  लोकसभा में चुनाव कानून (संशोधन) विधेयक, 2021 पेश किया. विपक्ष के विरोध और हंगामे के बीच ये कानून लोकसभा में पास हो गया. केंद्रीय कैबिनेट ने 16 दिसंबर को इस विधेयक को पास कर दिया था. इस विधेयक के तहत, वोटर आईडी को आधार कार्ड से लिंक किया जा सकता है. इस विधेयक में क्या है खास? विपक्ष इसका विरोध क्यों कर रहा है? जानिए.

आधार और वोटर आईडी को लिंक करने की सिफारिश क्यों?

चुनाव आयोग साल 2015 से वोटर आईडी और आधार कार्ड को लिंक करने की मांग कर रहा है. मार्च में, पूर्व कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने लोकसभा को एक लिखित जवाब में बताया था कि चुनाव आयोग ने "आधार इकोसिस्टम" के साथ वोटर लिस्ट को जोड़ने का प्रस्ताव दिया है, ताकि "एक ही व्यक्ति के कई नामांकन के खतरे को रोका जा सके."

आधार नंबर को वोटर आईडी से जोड़ने के लिए चुनाव आयोग ने नेशनल इलेक्टोरल लॉ प्यूरीफिकेशन एंड ऑथेंटिकेशन प्रोग्राम भी शुरू किया था. आयोग ने कहा कि लिंक करने से एक व्यक्ति के नाम पर कई नामांकन खत्म हो जाएंगे. उस समय, इस प्रोग्राम को रोक दिया गया था. सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि वेल्फेयर योजनाओं का लाभ उठाने के लिए आधार का उपयोग वैकल्पिक रहेगा. इसके बाद चुनाव आयोग ने अपने प्रस्ताव में संशोधन किया और कहा कि लिंकिंग वैकल्पिक होगी.

क्या आधार और वोटर आईडी को आपस में लिंक किया जा सकता है?

चुनाव आयोग के वोटर पोर्टल पर वोटर आईडी कार्ड और आधार कार्ड को लिंक करने का ऑप्शन उपलब्ध है.इसके लिए voterportal.eci.gov.in वेबसाइठ पर अपने फोन नंबर/ईमेल आईडी/वोटर आईडी  नंबर से लॉगिन करना होगा. इसके बाद प्रक्रिया के तहत वोटर आईडी को आधार से लिंक किया जा सकता है.


विधेयक के दूसरे बड़े बदलाव क्या हैं?

इस विधेयक में एक दूसरा जो बड़ा बदलाव सुझाया गया है, वो ये है कि नए वोटर को खुद को मतदाता के तौर पर रजिस्टर कराने के लिए साल में चार मौके मिलेंगे. मौजूदा समय में, 1 जनवरी या उससे पहले 18 साल पूरा होने पर ही व्यक्ति खुद को वोटर के तौर पर रजिस्टर करा सकता है. इसके बाद 18 साल की आयु पूरी होने पर, उसे वोटर के तौर पर रजिस्टर कराने के लिए अगले साल का इंतजार करना पड़ेगा.

रिपोर्ट्स के मुताबिक, नए विधेयक में, हर साल 1 जनवरी, 1 अप्रैल, 1 जुलाई और 1 अक्टूबर को क्वालिफाइंग डेट्स के तौर पर रखा गया है.

वहीं, इस विधायक का उद्देश्य चुनाव कानून को सर्विस वोटर्स के लिए जेंडर न्यूट्रल बनाना है. फिलहाल, एक सेना के जवान की पत्नी एक सर्विस वोटर के रूप में रजिस्टर होने की हकदार है, लेकिन एक महिला सेना अधिकारी का पति नहीं है.

विपक्ष ने इस विधेयक पर क्या कहा?

ये विधेयक अगले साल पांच राज्यों - उत्तर प्रदेश, गोवा, पंजाब, मणिपुर और उत्तराखंड - में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले आया है. कांग्रेस से लेकर एआईएमआईएम इस विधेयक का विरोध कर रही हैं.


सदन में विधेयक पेश होने पर कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने कहा, "आधार का मतलब केवल निवास का प्रमाण होना था, ये नागरिकता का प्रमाण नहीं है. अगर आप वोटर्स के लिए आधार मांगने की स्थिति में हैं, तो आपको केवल एक दस्तावेज मिल रहा है, जो नागरिकता नहीं, बल्कि निवास दर्शाता है. आप संभावित रूप से गैर-नागरिकों को वोट दे रहे हैं."


कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने कहा, "मतदान एक कानूनी अधिकार है. आधार को मतदाता पहचान पत्र से जोड़ना गलत है."

वहीं, एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने लोकसभा में विधेयक पेश होने से पहले नोटिस देकर इस विधेयक का विरोध किया था. ओवैसी ने अपने नोटिस में कहा, "विधेयक सदन की विधायी क्षमता से बाहर है, क्योंकि ये केंद्र सरकार द्वारा अपने फैसले (पुट्टास्वामी बनाम सरकार) में निर्धारित कानून की सीमाओं का उल्लंघन करता है. वोटर आईडी और आधार को जोड़ने से निजता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन होता है, जैसा कि सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में परिभाषित किया है. सदन ऐसे कानून को बनाने के लिए सक्षम नहीं है, जो नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता हो."