बैस्ट रिपोर्टर न्यूज,जयपुर। वरिष्ठ व्यंग्यकार, कवि फारूक आफरीदी ने कहा कि व्यंग्य पुरोधा हरिशंकर परसाई की व्यंग्य रचनाओं का बुलाकी शर्मा द्वारा राजस्थानी भाषा में अनुवाद हमारे राजस्थानी व्यंग्य साहित्य को समृद्ध करेगा। उन्होंने कहा कि देश के नामचीन साहित्यकारों की रचनाओं, पुस्तकों के अनुवाद से निश्चय ही मायड भाषा के पाठको को बेहतर साहित्य पढ़ने के अवसर मिलेंगे। इससे साझा संस्कृति मजबूत होती है। आफरीदी यहां पंडित जवाहर लाल नेहरू बाल साहित्य अकादमी के सभा भवन में वरिष्ठ व्यंग्यकार एवं अकादमी के उपाध्यक्ष बुलाकी शर्मा द्वारा प्रख्यात व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई के व्यंग्य संग्रह ‘विकलांग श्रद्धा का दौर‘ के राजस्थानी भाषा में किए गए अनुवाद ‘विकलांग श्रद्धा रो दौर‘ के लोकार्पण अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि परसाई व्यंग्य की पाठशाला थे। उनकी परम्परा को आगे बढ़ाते हुए बुलाकी शर्मा ने उनके व्यंग्य साहित्य का राजस्थानी में प्रशंसनीय अनुवाद कार्य किया है। कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि व्यंग्यकार प्रभात गोस्वामी ने कहा कि आज़ादी के बाद व्यंग्य को एक समृद्ध विधा के रूप में स्थापित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करने वाले परसाई के साहित्य अकादमी से पुरस्कृत व्यंग्य संग्रह का बुलाकी शर्मा ने इतनी सिद्धहस्तता से अनुवाद किया है कि मौलिक रचना की अनुभूति होती है। बुलाकी शर्मा स्वयं समर्थ व्यंग्यकार हैं इसलिए इतना सार्थक अनुवाद करने में सफल हुए हैं। वरिष्ठ व्यंग्यकार एवं नेहरू बाल अकादमी के सचिव राजेन्द्र मोहन शर्मा ने कहा कि परसाई की व्यंग्य रचनाओं में युगीन विसंगतियों पर प्रहार के साथ मनुष्य जीवन के पाखंड उजागर होते हैं। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए नेहरू बाल अकादमी के अध्यक्ष एवं सुपरिचित गीतकार इकराम राजस्थानी ने कहा कि परसाई के व्यंग्य हर वर्ग के पाठकों में लोकप्रिय हैं। बुलाकी शर्मा के अनुवाद के जरिए राजस्थानी भाषा के पाठक परसाई जी की कालजयी व्यंग्य रचनाओं से संभवतः पहली बार साक्षात करेंगे।
अनुवादक बुलाकी शर्मा ने बताया कि राजस्थानी में अनुदित इस पुस्तक मे परसाई जी की 41 व्यंग्य रचनाएँ हैं। व्यंग्य लेखन की बारीकियां समझने के लिए हर व्यंग्यकार को हरिशंकर परसाई को पढ़ना चाहिए। उनके व्यंग्य में विसंगतियां,विडम्बनाओं पर कटाक्ष के साथ ही भाषा का अद्भुत सौन्दर्य मौजूद है। कार्यक्रम में कवि - गीतकार सत्यदेव संवितेन्द्र, उपन्यासकार ओम प्रकाश भाटिया, शायर अब्दुल समद राही ने भी विचार रखे। महेश चंद्र गुप्ता ने आभार ज्ञापित किया।