धर्म संसद के नाम पर घोर अधर्म की तैयारी

धर्म संसद के नाम पर घोर अधर्म की तैयारी देश को विखण्डित करने की नापाक कोशिश है। धर्म संसद के नाम पर देश में अराजकता व हिंसा फैलाने की साजिश खुलेआम हो रही है। 

देश का प्रधानमंत्री व सत्ताधारी दल के नेता सत्ता के लालच में देश को नफ़रत की आग में झौंकने वालों को अप्रत्यक्ष समर्थन देकर दोगली चाल चल रहे हैं। 

गाँधी को गाली व गोड़से को ताली मिल रही है,संविधान की खुलेआम धज्जियां उठाई जा रही है। जनता व उसके अधिकारों को कुचला जा रहा है। कही ईसाईयों पर हमले हो रहे हैं, कहीं सिक्खों को भड़कानें की भरपूर कोशिश की जा रही है, मुसलमानों की तो बात ही छोड़ दो,वो तो कुंठित लोगों का पसंदीदा टॉपिक है, पूरे देश में अराजकता व धर्मांधता फैलाने को राष्ट्रभक्ति् मानने वालों की भीड़ बढ़ रही है ।  

आश्यर्च होता है बात—बात में संज्ञान लेने वाला सर्वोच्च न्यायालय कहाँ सोया हुआ है, सुप्रीम कोर्ट का तो काम ही संविधान और नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करना है। 

देश न्यायालय की ओर बड़ी उम्मीद से देख रहा है और न्यायालय है कि कुम्भकरण की तरह आराम फरमा रहा है। यदि न्यायालय समय पर नहीं जागा तो न्यायालय की इस प्रकार की रहस्यमयी चुप्पी इस देश की बर्बादी के सबसे महत्वपूर्ण कारणों में एक सिद्ध होगी। 

भारत के सर्वोच्च न्यायालय से ससम्मान अपील है कि वो देश के भीतर लगातार बढ़ रही नफ़रत व हिंसा फैलाने के प्रयासों पर अपनी चुप्पी तोड़े तथा देश के प्रधानमंत्री से पूछे कि आखिर वो देश के विखण्डन में जुटी ताकतों को अपना मौन समर्थन क्यों दे रहे हैं। 

क्या न्यायालय का डण्डा हम जैसे मामूली लोगों पर ही चल सकता है,देश में न्याय मांगने की प्रक्रिया तो सदा से ही इतनी महंगी है कि आम आदमी अन्याय को ही न्याय मानकर मन मसोस कर बैठ जाता है, ऊपर से जो कुछ लोग बोलना भी चाहते हैं उन्हें अवमानना के चाबुक से डराकर रखा जाता है।

न्यायमूर्ति जी,स्थिति बेहद नाजुक है और लगातार नाजुक होती जा रही है, देश सामाजिक,राजनीतिक,धार्मिक, आर्थिक एवं मानसिक कंगाली के अंधे कुएं में गोता लगा रहा है।

देशभक्ति का ढोंग रचकर लोग देश को विखण्डित करने वाले निर्लज काम बेखौफ होकर कर रहे हैं। अत: हे 'न्यायमूर्ति', मूर्ति बनकर तमाशा मत देखिए 'न्याय' कीजिए 'न्याय'। वो भी त्वरित व सतपक्ष । आवेश में हमारी भाषा थोड़ी कड़वी लग सकती है परन्तु देश की बिगडती स्थिति को देखकर हो रही घोर पीड़ा के कारण इतना कड़वापन आना सहज स्वाभाविक है,अत: हमारे कथन को नहीं हमारे भाव को ध्यान में रखना ।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व सत्ताधारी दल के नेताओं व प्रशंसकों से भी अपील है कि देश को विकास की ओर ले जाने के मुद्दों पर ध्यान दो, विखण्डन व विनाश के एजेंडे का तत्काल त्याग दो,देश रहेगा तो हम सब रहेगें। आप जनता के सेवक हो, आपको जनता ने अपने लिए रोटी,कपड़ा,मकान,रोजगार और सुरक्षित व प्रेमपूर्ण वातावरण उपलब्ध कराने के लिए जिम्मेदारी दी है परन्तु आप हो कि प्रधानमंत्री की बजाय परिधान मंत्री व प्रचार मंत्री की भूमिका से बाहर आने को तैयार ही नहीं हैं,आपको रोज कुछ ऐतिहासिक करने का मन करता है और जल्द बाजी में ऐसा ऐतिहासिक कर जाते हो कि वर्तमान व भविष्य दोनों संकट में पड़ जाता है। मोदी जी रोज कुछ ऐतिहासिक करना ना तो सम्भव है और ना ही आवश्यक , देश में थोड़ी स्थिरता रहने दो।

देश के विकास के लिए सबका साथ,सबका विकास,सबका विश्वास और सबका प्रयास बेहद जरूरी है,नारा भले ही आपका हो परन्तु मुझे यह कहते हुए बेहद दु:ख हो रहा है कि आप इस नारे के किसी भी हिस्से को पूूर्ण करने में असफल रहे हो परन्तु अभी भी वक्त है केवल मंत्र देने और मंत्र जाप करने से कुछ नहीं होता है मंत्र को अपनी कार्यशैली में मूर्तरूप देना होता है।


शुभेच्छु!

अनिल यादव

सम्पादक,बैस्ट रिपोर्टर न्यूज

संस्थापक सदस्य,सतपक्ष पत्रकार मंच।

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