‘समान नागरिक संहिता का औचित्य’ विषय पर ’मुक्त मंच की 71 वीं संगोष्ठी सम्पन्न


बैस्ट रिपोर्टर न्यूज,जयपुर। मुक्त मंच जयपुर की 71वीं मासिक संगोष्ठी “समान नागरिक संहिता का औचित्य विषय पर प्राकृतिक चिकित्सालय के समीप योग साधना केन्द्र पर सम्पन्न हुई। संगोष्ठी की अध्यक्षता भाषाविद् एवं साहित्यकार डॉ. नरेन्द्र शर्मा कुसुम ने की, मुख्य अतिथि थे भारतीय प्रशासनिक सेवा के पूर्व अधिकारी श्री अरुण ओझा एवं संगोष्ठी का संयोजन किया शब्द संसार’ के अध्यक्ष श्रीकृष्णा शर्मा ने।

अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में डॉ. नरेन्द्र शर्मा कुसुम’ ने कहा कि विविधता में एकता वाले इस देश में समान नागरिक संहिता’ का निर्वहन एक जटिल समस्या है क्योंकि हमारे यहाँ प्राचीनकाल से ही एकता बन्धुत्व और समरसता का भाव रहा है हमने एकरूपता को कभी स्वीकार नहीं किया। जब प्रकृति में अनेकरूपता है, उसी के कारण उसमें सौन्दर्य का प्राकट्य हुआ है। ऋग्वेद में कहा गया है कि हम एक साथ चलें, एक साथ बोलें और एक जैसा व्यवहार करें अर्थात एक स्वस्थ सांस्कृतिक परम्परा को मिलजुलकर निभाना है। हमारा देश अन्य देशों की तुलना में धर्म, जाति, भाषा, क्षेत्रीयता, वर्ण की दृष्टि से भिन्न है, इसकी समस्याएँ भी इन्हीं के मूल में हैं। राष्ट्रीय प्रारूप पर विचार करते समय जनमत पूरा पूरा ध्यान दिया जाना चाहिए अन्यथा हमारे प्रयास राष्ट्रीय अखण्डता और एकता भंजक हो सकते हैं।


डॉ. नरेन्द्र शर्मा ’कुसुम’ ने कहा कि सरकार को विषय की गम्भीरता और संवेदनशीलता को ध्यान में रखते हुए विषय की विविधताओं, आशंकाओं, चिन्ताओं और सम्भावनाओं को भली भाँति समझ कर ही कदम उठाना चाहिए। यदि परिस्थियों का दबाव न हो तो इसे फिलहाल स्थगित किया जाना ही सार्थक होगा।  आवश्यकता इस बात की है कि, हम इसके अतिरिक्त’ बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, आर्थिक असमानताओं तथा अत्याचार जैसी समस्याओं को प्राथमिकता से निपटाएँ क्योंकि लोकतंत्र में लोक को हाशिये पर जाने से रोकना चाहिए ; हर हालत में देश में अमन चैन प्रसन्नता और खुशहाली हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए । 

सेवानिवृत्त मुख्य अभियांत्रिक दामोदर चिरानिया ने कहा कि हमारे देश में सामाजिक असमानताओं के मुख्य आधार हैं धर्म, धर्मांतरण, पूजा पद्धति जातियाँ ,उपजातियाँ, खानपान में शाकाहारी, मांसाहारी में भी झटका बनाम हलाल, विवाह, शादी पद्धतियों में वैविध्य , पैत्रिक सम्मत्ति के हस्तान्तर के विषयों में वैविध्य । 

चिरानिया ने दृढ विश्वास के साथ कहा कि हमारा समाज सैंकड़ों वर्षों से विकसित सभ्यता और संस्कृति वाला रहा है इसलिए हम उक्त असमानताओं का गम्भीरता से संज्ञान नहीं लेते हैं। देश में जब आपराधिक मामलों से सम्बद्ध कानून एक हैं तो हो फिर अलग अलग पर्सनल लॉज की क्या जरूरत है।

शिक्षाविद श्री सुभाष गुप्ता ने कहा कि समान नागरिक संहिता अवांछनीय है । वस्तुतः एक देश, एक विधान, एक निशान महज नारेबाजी है इसे सत्ताधारी दल वोट कैचिंग डिवाईस मान रहा है जो एक मिथ है। 


बैस्ट रिपोर्टर न्यूज के सम्पादक अनिल यादव ने कहा ‘समान नागरिक संहिता’ के ड्राफ्ट को सार्वजनिक किए बिना लोगों से सुझाव मांगना वो भी  महज 30 दिनों के भीतर यह बताने व समझने के लिए काफी है कि सरकार इसका शगूफा सिर्फ हिन्दु वोटों के धु्रवीकरण एवं मुस्लिमों को आइसोलेट करने के तथा देश की जनता को अपने जीवन से जुड़े मुख्य मुद्दों से भटका कर वोट की लूट मचाना मात्र है। देश के लिए इस समय इस तरह के अलगावादी ना सिर्फ अनुपयोगी हैं वरन् बेहद घातक व मूर्खतापूर्ण के साथ-साथ धूर्ततापूर्ण भी हैं। मुस्लिमों में बहुविवाह व जनसंख्या दर में बढ़ोतरी की बातें सिर्फ अफवाहे हैं, लोगों को भ्रमित कर समाज में धृणा,भय व नफरत का वातावरण पैदा कर उनका वोट लेना ही मुख्य मकसद है, ये आंकड़े भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा सम्पन्न ‘नेशनल फैमेली हैल्थ सर्वे’ की रिपोर्ट 2019-21 के बिलकुल विपरीत हैं। संविधान निर्माता डॉ. बी. आर. अम्बेड़कर ने भी देशवासियों के लिए समान नागरिक संहिता को आवश्यक तो माना परन्तु इसे अनुच्छेद 44 के रूप में राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों रूप में जोड़ा , जिसका उद्देश्य यह का कि जब राष्ट्र इसे स्वीकार करने के लिए तैयार हो और इसे सामाजिक स्वीकृति मिल आए तब इसे मूर्त रूप दिया जाए । फिलहाल इसे स्थगित रखा जाए, डण्डे के जोर पर इसे थोपा ना जाए ?

भारतीय प्रशासनिक सेना के पूर्व अधिकारी श्री आ० एस० छाखड़ ने कहा कि समान नागरिक संहिता वांछनीय नहीं है। हमारी प्राथमिकताओं में गरीबी, महँगाई अशिक्षा बेरोजगारी भ्रष्टाचार उन्मूलन तथा अन्ध विश्वास उन्मूलन होना चाहिए। जहाँ तक रिफोर्म की बात है तो उस पर मुक्त रूप से विमर्श होना चाहिए । सरकार इसे 2024 में चुनाव जीतने का मुद्दा बनाना चाहती है, पहले सर‌कार ड्राफ्ट तो लाए, उस पर धार्मिक संगठनों, जन संगठ‌नों, बुद्धिजीवियों, राजनीतिज्ञों द्वारा चर्चा होनी चाहिए और सहमति बनने पर ही इसे लागू किया जाए । 

पूर्व बैंक अधिकारी श्री इन्द्र भंसाली ने कहा कि मोदी सर‌कार आगामी 14 जुलाई से शुरू होने वाले सत्र में ‘समान नागरिक संहिता’ लाने वाली है। भारतीय जनता पार्टी कह रही है हमने राम मंदिर , अनुच्छेद 370 मुद्दे को हल कर दिया है। अब मैनिफैस्टों के किए वायदों में समान नागरिक संहिता हो शेष है। इसी बीच उत्तराखण्ड सरकार ने ऐलान किया है वह राज्य में यूसीसी के लिए समिति गठित चुकी है और जल्द ही समान नागरिक संहिता लागू करने जा रही है। गोवा में तो 1965 से ही समान नागरिक संहिता लागू है। 

भारतीय प्रशासनिक सेना के पूर्व अधिकारी ए.आर.पठान ने कहा कि हम कहने को तो ‘लोकतांत्रिक’ हैं परन्तु लोकतंत्र में लोक गौण हो गया है । देश का विभाजन कौन चाहता था ? पर जब ’डायरेक्ट एक्शन’ का ऐलान हुआ तब घबराहट में विभाजन हो गया। अनुसूचित जाति तथा जनजातियों का आरक्षण कौन चाहता था ? पर डॉ. आम्बेडकर के दबाव में यह निर्णय लिया जो था तो दस साल के लिए, पर आज तक जारी है। पठान ने कहा कि बाबरी के प्रकरण को हो देखो, हिन्दु मन्दिरों के वहाँ कोई अवशेष नहीं मिले तथापि न्यायविद्ों ने न्याय नहीं किया अपितु ‘कम्प्रोमाइज’ होकर आस्था की दुहाई देते हुए फैसला दिया गया । लोकतन्त्र के नाम पर ऐसे नाटक- नौटंकी जारी है। देखना समान नागरिक संहिता प्रकरण का पटाक्षेप भी इसी तरह हो आएगा।

पत्रकार एवं साहित्यकार डॉ. फारूक अफरीदी ने यू.सी.सी का विरोध करते हुए कहा कि चुनाव से ठीक पूर्व यूसीसी जैसे ज्वलंत ही नहीं बल्कि ज्वलनशलील मुद्दों को लाना साम्प्रदायिक व तानाशाही ताकतों की देश को झगड़ों में झौंकने की साजिश है वो भी केवल चुनाव जीतने के लिए। रा.क.पा. प्रमुख श्री शरद पवार में कहा कि सू. सी. सी.का मुद्दा भाजपा सरकार की नाकामी का प्रतीक है । तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन ने कहा कि यह प्रयास देश में धार्मिक उन्माद को प्रेरित करेगा ।


प्रगतिशील चिन्तक, और वरिष्ठ पत्रकार श्री सुधांशु मिश्र ने कहा कि हम विविधता में एकता में विश्वास रखते हैं,हमारा सोच दकियानूसी है और हम बहुसंख्यक हिन्दू हैं । यू.एस.ए. में  50 राज्य हैं और प्रत्येक के अपने अपने कानून हैं । होने को तो हम भी यूनियन ऑफ स्टेट्स’ हैं पर रिफार्मस में विश्वास नहीं करते हैं धूमकर फिर गुरू गोलवाल्कर ,हेडगेवार की ओर मुखातिब होते हैं, हमें धृणा के आधार पर सक्रिय रहने में आनंद आता है। यदि उचित सहमति एवं विचार-विमर्श के यूसीसी लागू की जाती है तो देश की एकता व अखण्डता ख़तरे में पड़ जाएगी । अभी समाज ‘समान नागरिक संहिता को स्वीकारने की मनःस्थिति में नहीं है।

मुख्य अतिथि भारतीय प्रशासनिक सेवा के पूर्व अधिकारी अरूण ओझा ने कहा कि संविधान लागू होने के कुछ समय बाद ही हिन्दुओं के निजी कानूनों को संहिताबद्ध कर दिया गया परन्तु अन्य समुदायों के कानूनों को पर्सनल लॉ के नाम पर निजी कानून घोषित कर दिया फलत धार्मिक समूहों का विरोध, राजनीतिक सहमति का अभाव और विविध कानू‌नों के मनभेद रहे हैं और धार्मिक समुदायों के तीव्र विरोध का सामना करना पड़ा फलतः हमारी जो विविधता है वह एक खूबसूरती के रूप में उभरी है। नवम्बर 2019 में नारायण लाल पंचारिया ने संसद में एक विधेयक प्रस्तुत किया किन्तु विरोध के कारण वापस त्ले लिया गया। मार्च 2000 में श्री किरोडीलाल मीना फिर बिल लाए पर असफल रहे। यू.सी.सी. का असर केवल मुस्लिमों पर ही नहीं अपितु पूर्वोत्तर विशेषरूप से नागालैण्ड, मिजारम पर भी होगा। लगभग 10 करोड़ आबादी जिसमें 12 प्रतिशत पूर्वोत्तर में ही रहती है। ये विभिन्न जातियाँ अपने रीति रिवाजों के अनुसार ही जीवन जीती हैं। मेघालय में कुछ जातियाँ मातृ सत्तात्मक है और सम्पत्ति सबसे छोटी बेटी को ही मिलती है। गारो जाति के दामाद अपनी पत्नी के माता पिता के साथ रहते आता है। कुछ नगा जनजातियों में महिलाओं की सम्पत्ति विरासत में लेने के जाति जनजाति के बाहर शादी की अनुमति नहीं । अतः समान नागरिक संहिता एकता और सांस्कृतिक को विरूप बना देगी । 

अपने संयोजकीय वक्रव्य में शब्द संसार’ के अध्यक्ष श्रीकृष्ण शर्मा ने कहा कि संविधान में अनुच्छेद 44 के अन्तर्गत लिखा है कि शादी, तलाक तथा तलाक के बाद भुजाएं भत्ता, सम्पत्ति का अधिकार तथा निःसन्तानता की स्थिति में गोद लेने के अधिकारों के सम्बन्ध में राज्य समान नागरिक संहिता के लिए प्रयास करें । श्रीकृष्णा शर्मा ने बताया कि 23 नवम्बर 1948 को संविधान सभा में समान  नागरिक संहिता पर सर्व श्री मोहम्मद इस्माल , नजरूद्दी अहमद, महमूद अली बेग, के. एम. मुन्शी,  अल्लादि कृष्णास्वामी अययर, सरदार वल्लभ भाई पटेल तथा पंडित जवाहरलाल में विस्तार से विमर्श किया और फलतः नागरिकों के मौलिक अधिकारों के अतिरिक्त अनुच्छेद 44 के अन्तर्गत राज्य की नीति निर्देशक में डाल दिया। श्रीकृष्णा शर्मा ने बताया कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने भी समय समय पर यू.सी.सी लागू करने के आगाह किया उनमें मोहम्मद अहमद खान बनाम शाह बानो 1985, सरला मु‌दगल प्रकरण 1995  लिली थॉमस प्रकरण 20000 उल्लेखनीय है। यही नहीं न्यायमूर्ति मार्कण्डेय काटजू ने इसे आगे बढाने की पैरवी की। न्यायमूर्ति मुहम्मद करीम थागला ने पं. मोतीलाल नेहरू स्मृति कारख्यान में, प्रो० ताहिर मुहम्मद ने अपनी पुस्तक ’मुस्लिम पर्सनल लॉ’ में भी यूसीसी की वकालत की जबकि न्यायमूर्ति एम.वी. बेग ने अपनी पुस्तक  ’इम्पैक्ट ऑफ़ सेक्यूलरिज्म’ 1973 में यू सी सी लागू करने पर बल दिया। जबकि 21 वें भारतीय विधि आयोग ने कहा कि अभी यू. सी. सी. जरूत नहीं है परन्तु  22 वे भारतीय विधि आयोग ने 13 जून से 13 जुलाई 2023 तक धार्मिक संगठनों एवं राजनीतिज्ञों तथा राजनीतिक दलों से सुझाव आमन्त्रित किए हैं और 30 जून तक 8.5 लाख सुझाव उनके पास आए भी हैं। यू.सी.सी. सन्दर्भ में संसदीय स्थाई समिति की बैठक भी 3 जुलाई 2023 का विचार विमर्श के लिए आहूत की गई है।

संगोष्ठी में लब्ध प्रतिष्ठ व्यंग्यकार एवं साहित्यकार, भारतीय प्रशासनिक सेवा के पूर्व अधिकारी आर.सी. जैन, राजस्थान शासन में विभिन्न विभागों में वित्तीय सलाहकार रहे एवं साहित्यकार राजेन्द्र कुमार शर्मा, लेखक यशवन्त कोठारी , कलाकार अरुण ठक्कर तथा वरिष्ठ स्तम्भकार ललित शर्मा ने भी अपने विचार रखे। भारतीय प्रशासनिक सेवा के पूर्व अधिकारी श्री विष्णुलाल शर्मा ने धन्यवाद ज्ञापन किया।



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