'सुखी या प्रसन्नता' मनुष्य की प्राचीन व नैसर्गिक अभिलाषा

 अंतर्राष्ट्रीय प्रसन्नता दिवस 20 मार्च 2023 पर विशेष आलेख

लेखक : के.एस.यादव


मानव की संपूर्ण विकास यात्रा में मानव की हमेशा सुखी रहने की ही चाहना रही है। लाखों सालों तक वह  गुफाओं में अपनी जंगली जानवरों से सुरक्षा करता रहा तथा धीरे-धीरे आग एवं पहिए के अविष्कार  कर के सुविधाएं जुटाने के लिए शिक्षा व विज्ञान के तर्क एवं बुद्धि के सहारे प्रकृति का इतना दोहन कर दिया की धरती को बीमार कर दिया तथा ग्लोबल वार्मिंग जैसी घटनाएं मानव के अस्तित्व के लिए खतरा साबित होने लगी है। मानव ने जल, थल, नभ को चीर करने के बाद भी उसे सुख और खुशी नहीं मिली । मानव की कल्पनाशीलता की अद्भुत शक्ति से सुविधाओं की गुणवत्ता में भी तो बेतहाशा सुधार आ गया लेकिन मानव की गुणवत्ता और मानव मूल्यों में सुधार नहीं आया । 
मानव हमेशा हैप्पीनेस की तलाश बाहरी दुनिया में करता रहता है । एक बुरा समाचार यह है ​कि प्रसन्नता कभी बाहर से नहीं मिलती। वैसे तो प्रकृति और अस्तित्व में सूख ,सुंदरता और संगीत का संगम है पर उस खुशी को पाने की पहचान नहीं है। प्रकृति में दुख तो कहीं भी नहीं है ,दुख तो केवल मानव की खोज है।   

हैप्पीनेस एक जीवन की यात्रा है तथा जीवन जीने की शैली है, यह कोई मंजिल नहीं है । हैप्पीनेस बाहर नहीं है उसे अपने अंदर ही सृजन करना होता है । हमारे चारों तरफ खुशियां ही खुशियां है हमें केवल अपने भाव का और अपना विस्तार करके उन्हें पहचानना पड़ता है। कष्टों और दुखों की अनुपस्थिति भी हैप्पीनेस ही तो है। 

हैप्पीनेस का विकल्प हमें सुबह उठते ही कर लेना चाहिए। हमारा सुबह उठना ही एक बहुत बड़ी खुशी है क्योंकि कितने ही लोग रात को सोए थे मगर सुबह नहीं उठ पाए। हमें प्रकृति से जो भी मिला है उसके प्रति कृतज्ञता का भाव होना चाहिए । कृतज्ञता में बहुत बड़ी शक्ति है जिसके माध्यम से बहुत बड़ी खुशी हम दूसरों को दे सकते हैं।  समस्याएं एवं दुख हम कहीं से भी  पा सकते हैं लेकिन प्रसन्नता हमारे अंदर से ही उर्जित होती है । 

आज के भागमभाग दौड़ के समय हम अपना धैर्य और सहनशीलता से निरंतर खुशी का भाव महसूस कर सकते हैं। खुशी तथा प्रसन्नता का कोई एक समय नहीं होता है जैसे फिल्म में मोगैंबो खुश हुआ या कभी खुशी कभी गम । प्रसन्नता का भाव तो मानव को निरंतर चाहिए । बाहर के वातावरण में अगर हम बदलाव नहीं ला सकते तो परिस्थितियों के अनुसार अपने आपको ढाल के भी सुखी हो सकते हैं । 

हमारी उम्मीदें हमें निराश करती है। हम हमेशा परफेक्शन की उम्मीद करते रहते हैं । और परफेक्शन के कारण हम अफेक्शन नहीं कर पाते । आज सुखी होने के लिए मानव मानव के मध्य संबंधों में तृप्ति एवं भाव स्थापित करना होगा तभी अपनापन का भाव पैदा होगा। 

आज रूस और यूक्रेन के युद्ध के साथ-साथ हमारे मस्तिष्क में भी युद्ध चलता रहता है। प्रथम तो हमारा मस्तिष्क ही हमारा सबसे बड़ा दुश्मन बन जाता है हमारे अंदर मधुरता और संगीत नहीं है । 

या तो हम अपने से दुखी हैं या अपनों से दुखी है। इसलिए हमें सुखी होने के लिए अपनेपन का विस्तार करना होगा  । अपने परिवारों का दूसरे परिवारों के साथ विस्तार करना होगा और सनातन संस्कृति को अपनाना पड़ेगा । संयुक्त परिवार व्यवस्था खत्म होने के बाद फैमिली वार्मिंग तथा पारिवारिक विघटन हुआ है जिस की लपटें ग्लोबल वार्मिंग तक पहुंच गई। हमें अपनी जिंदगी को निरपेक्ष तरीके से जीना होगा दुर्भाग्य की बात है कि हम अपनी जिंदगी दूसरों से तुलना करके तुलनात्मक रूप जिंदगी को जीने की बजाए झेल रहे हैं । हमने अपनी अपनी आवश्यकताओं का भी निर्धारण नहीं किया है तथा सुविधाओं के साथ-साथ हमारी आवश्यकता पूर्ति के भी संतुलन बिंदु तय करने होंगे ।   

हमारी शिक्षा पद्धति हमें रोजगार के लिए केवल पैसा कमाने का हुनर पैदा करती है तथा जीवन को जीने का सारा डिजाइन सिलेबस से बाहर की बातें हैं। हमें अभी जीना होगा इसी घड़ी का आनंद लेना होगा क्योंकि कल का कोई अस्तित्व नहीं है । दुर्भाग्य की बात है की या तो हम भूतकाल की पीड़ा मैं जीते हैं या भविष्य की चिंता में जी रहे होते हैं और वर्तमान हमारा हाथ से मिट्टी की तरह फिसलता चला जाता है। 

आइए अपनी खुशी के लिए दुनिया को खुशी प्रदान करें। आस-पड़ोस का खुशी से वातावरण सुगंधित करें । कहते हैं जो जिसके पास होगा वह वही  बाटेगा, दुखी आदमी दुख बाटेगा, और सुखी आदमी सुख बटेगा । आज सोशल मीडिया के आने से हमारे कनेक्शन तो जुड़ जाते हैं लेकिन संबंध नहीं बनते। 

आज हमारे अंदर कृतज्ञता का भाव पैदा करना होगा । पुरानी पीढ़ी ने भी अपने समय काल के हिसाब से अच्छा ही किया है और ऐसा  आधार तैयार किया है जिसके धरातल पर नई पीढ़ियां भी बहुत अच्छा कर रही हैं । हमारी युवा शक्ति प्रत्येक क्षेत्र में नए नए आयाम स्थापित करती जा रही है  लेकिन अपनी जड़ों से अलग भी होती जा रही है । हमें वापिस सभी चेहरों पर  खुशी लाने के लिए मानव मूल्य कृतज्ञता  प्रेम सौहार्द गौरव शालीनता  भावों को अपने संबंधों में स्थापित करना होगा। 

अगर हम काम करके भविष्य में खुश होना चाहते है तो मर्ग मरीचिका की तरह कभी खुशी नहीं मिलेगी। लेकिन अगर खुश होकर काम करेंगे तो हम संपूर्णता की ओर बढ़ेंगे । किसी ने ठीक ही कहा है 

खुशी मेरी तलाश में दिन रात यूं ही भटकती रही। 

कभी उसे मेरा घर ना मिला तो कभी हम घर ना मिले।

*****लेखक परिचय ***** 

लेखक के एस यादव श्रम एवं रोजगार मंत्रालय भारत सरकार से सेवानिवृत्त क्षेत्रीय निदेशक है तथा इंडियन सोसायटी फॉर ट्रेंनिंग एंड डेवलपमेंट की मैनेजिंग कमेटी के सदस्य हैं तथा सीएजी के लेखा ऑडिट अधिकारियों को पर्यावरण एवं सतत विकास लक्ष्यों पर लगातार प्रशिक्षण दे रहे हैं तथा यूनिवर्सल हुमन वैल्यूज तथा जीवन विद्या  से जुड़े हुए हैं। विभिन्न औद्योगिक संस्थानों, सेवा क्षेत्रों तथा शैक्षणिक संस्थानों में हैप्पीनेस कार्यशाला आयोजित करते रहते हैं। 20 मार्च अंतरराष्ट्रीय हैप्पीनेस डे पर लेखक हमारे साथ हैप्पीनेस मंत्र सांझा कर रहे हैं।