रिपोर्ट : आशा पटेल
विशेषज्ञों के अनुसार, विदेशी मुद्रा बाजार में उतार-चढ़ाव का असर अखबारी कागज की कीमतों पर भी पड़ सकता है। संघर्ष पर अनिश्चितता के चलते कीमतों में अभी थोड़ी कम बढ़ोतरी देखने को मिली है। हालांकि जिन अखबारों ने स्टॉक का पहले से ऑर्डर दिया हुआ है, उनके लिए ज्यादा चिंता करने की कोई बात नहीं है।
यूक्रेन पर रूस का आक्रमण ऐसे समय में हुआ है, जब पहले से ही उच्च मुद्रास्फीति और वैश्विक स्तर पर कमोडिटी की कमी चल रही है। कई विशेषज्ञों का यह भी मानना है कि भारत के लिए जिसका इस संघर्ष में कोई रणनीतिक हित नहीं है, नतीजा ज्यादातर आर्थिक होगा। कमोडिटी की कीमतों में वृद्धि से चालू खाता और घरेलू मुद्रास्फीति प्रभावित होगी। यहां तक कि यूरोप के लिए एक्सपोर्ट सेवाएं भी नकारात्मक रूप से प्रभावित होंगी। इसके साथ ही विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि रूस पर लगाए गए प्रतिबंध भारत और रूस के बीच नियमित व्यापार को प्रभावित कर सकते हैं।
हालांकि व्यापार मार्गों के अवरुद्ध होने की फिलहाल कोई आशंका नहीं है, लेकिन तेल की कीमतों में बढ़ोतरी का निश्चित रूप से भारतीय अर्थव्यवस्था पर अल्पकालिक और मध्यम अवधि का प्रभाव पड़ने वाला है।
इस बारे में हमारी सहयोगी वेबसाइट ‘एक्सचेंज4मीडिया’ से बातचीत में कुछ न्यूजप्रिंट सप्लायर्स का मानना है कि ज्यादातर न्यूजप्रिंट का ऑर्डर समुद्र के रास्ते में है या भेजे जाने की प्रक्रिया में है। यह युद्ध उन ऑर्डर को प्रभावित कर सकता है, जिन्हें अभी तक भेजा नहीं गया है। समुद्री माल ढुलाई, पश्चिमी और यूरोपीय कागज की कमी के कारण अगले कुछ महीनों में न्यूजप्रिंट की कीमतों में वृद्धि जारी रहने की आशंका है। हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि यह व्यवधान युद्ध पर निर्भर करेगा।