ऑयलबाँडस् के पीछे छुप रही है, केन्द्र सरकार!

लेखक: सीए सी एल  यादव

आम आदमी की आमदनी लगातार घटती जा रही है व उसके विपरीत महंगाई सुरसा के मुंह की तरह विकराल होती जा रही है।                                                   

खुदरा महंगाई दर लगातार बढ रही है वहीं थोक महंगाई की बढने की दर भी लगातार कई महीनो से दो अंको मे बनी हुई हैं।                                                   

अगस्त 2021 के थोक महंगाई के जारी आंकडो के अनुसार महंगाई की दर 11•39% के करीब है जो सर्वाधिक है। अर्थशास्त्रियो व विशेषज्ञो के अनुसार बेलगाम महंगाई का प्रमुख कारण बेलगाम बढते पेट्रोलियम उत्पादो के मूल्य है, जो हर आर्थिक गतिविधि को प्रत्यक्ष व परोक्षत प्रभावित करते हैं।

पेट्रोलियम उत्पादो व रसोईगैस के भावो मे बढोतरी के मेरी समझ से तीन कारण प्रमुख हैं -

1 केन्द्र व राज्य सरकारो द्वारा वसुला जाने वाला भारी-भरकम कर व सेस, जो वर्तमान मे पेट्रोलियम उत्पादो के बैसिक लागत मूल्य के दोगुने से भी ज्यादा के करीब है, व

2 कच्चे तेल के भावो मे तेजी, जो वर्तमान मे 70 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर बने हुए है, जो सामान्यत कुछ अपवादो जैसे 2008 की विश्वव्यापी आर्थिक मन्दी व 2011-12 मे कच्चे तेल के भाव 100 डॉलर प्रति बैरल के पार थे, जो एकबार तो 145 डॉलर प्रति बैरल को भी पार कर गये थे, को छोडकर अमुमन 40-50 डॉलर प्रति बैरल के आसपास रहते हैं,

3 रूपये का डाॅलर के मुकाबले मे लगातार कमजोर बने रहना ।

वर्तमान मे देश मे पेट्रोल-डीजल के भाव औसतन 100 रूपये प्रति लीटर को पार कर चुकें है। जिसका प्रमुख कारण वर्त्तमान मे डीजल पर 31•80 रूपये व पेट्रोल पर 32•90 रूपये प्रति लीटर वसुली जा रही एक्साइज ड्युटी है कस्टम ड्युटी भी बडी भारी मात्रा मे है जो औसतन 14 रूपये प्रति लीटर के करीब है।

 इस प्रकार, केन्द्र सरकार पिछले करीब 7 साल मे करीब 9 गुना डीजल पर व करीब 3गुना पेट्रोल पर एक्साइज ड्युटी  बढा चुकी हैं व कस्टम ड्युटी मे भी अप्रत्याशित बढोतरी देखने को मिली है।

इस महंगाई अनियंत्रित महंगाई से त्रस्त, देश के उधोग व व्यापार संगठनो के साथ ही आमजन भी, सरकारो से पेट्रोल पर लगने वाले भारी भारी-भरकम करो को घटाकर राहत देने की बार बार गुहार लगा रहे हैं, लेकिन देश की गूंगी बहरी सरकारो को कुछ सुनाई ही नही पड रहा हैं।

हाल ही मे देश की वित्तमंत्री से जब पेट्रोलियम उत्पादो पर केन्द्रीय करो के कम करने की मांग की तो बडी साफगोई के साथ, उन्होंने महंगे पेट्रोलियम उत्पादो का ठीकरा पूर्ववती कांग्रेस सरकार पर यह कहते हुए फोड़ दिया कि  "पूर्ववती युपीए सरकार के समय में तेल की कीमतो को जो सस्ता करके जो राहत आमजन को दे  रखी  थी न, उसका परिणाम मोदी सरकार भुगत रही है"। यही भी कहा कि, युपीए सरकार की गलत ट्रिक्स, के कारण पिछले 7 साल से करीब 9000 करोड रूपये प्रति वर्ष का ब्याज का भुगतान ऑयलबाँडस् के पेटे मोदी सरकार कर रही है। 

 क्या  इस प्रकार की आधारहीन बयानबाजी देश के वित्तमंत्री के लिए शोभनीय है?  

 क्या केन्द्रीय वित्तमंत्री का बयान, गलत आर्थिक व नीतिगत निर्णयो के कारण बिगडते आर्थिक असंतुलन के कारण उत्पन्न हताशा को तो बया नहीं कर रहा है?

इसी प्रकार का निराधार तर्क, 2018 मे तब के वितमंत्री ने भी दिया था ।

2018 मे ही तत्कालीन पेट्रोलियम मंत्री ने भी बयान दिया था कि "एनडीए सरकार 2 लाख करोड रूपये, जिसमें 70000 करोड रूपये ब्याज भी शामिल है, पिछली कांग्रेस सरकार द्वारा जारी किये गये ऑयलबाँड के पेटे भुगतान कर चुकी हैं। जो बिल्कुल निराधार था।

यानी की वर्तमान केंद्र सरकार का एक ही तर्क है कि महंगे पेट्रोल डीजल व रसोईगैस के लिए सिर्फ व सिर्फ ऑयलबाँडस् जिम्मेदार है।

 क्या पाठक इस प्रकार के निराधार तर्को से सहमत है?

जिस प्रकार मोदी सरकार हर बार महंगे पेट्रोल डीजल के लिए सिर्फ व सिर्फ ऑयलबाँडस् के पुनर्भुगतान के कारण, सरकार पर पडने वाले आर्थिक भार को  जिम्मेदार ठहरा रही हैं , तो यह भी जानना महत्वपूर्ण होगा कि:

1  ऑयलबाँड, सर्वप्रथम कब जारी हुए ?

2  कुल कितनी राशी के ऑयलबाँडस् कब से कब तक देश मे जारी हुए? 

3  मोदीसरकार ने अपने 7 साल के कार्यकाल मे, कुल कितनी राशी के ऑयलबाँडस् का पुनर्भुगतान किया गया ?

4  क्या मोदीसरकार ने अपने कार्यकाल में, किसी प्रकार कि कोई विशेष श्रेणी की प्रतिभुतियां या बाॅण्ड जारी नहीं किये या यदि जारी किये गये तो, कब  कितनी राशी के अतिरिक्त ऋण लिए गये व विभिन्न प्रकार के विशेष बाॅण्डस् जारी किये गये ?

जहां तक ऑयलबाँडस् के जारी होने की बात है तो, सबसे पहले 9000 करोड रूपये के ऑयलबाँड, मार्च 2002 मे तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व• श्री अटलबिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने जारी किये थे, जिनका पुनर्भुगतान मार्च 2012 किया।

देश मे एनडीए व युपीए की सरकारो के समय मे कुल 144186•02 रूपये के ऑयलबाँड अमुमन सन 2002-2009 के मध्य मे जारी किये गये थे। जिनमें से 1-4-2014 को 134423•17 करोड रूपये की राशी के ऑयलबाँड चुकाये जाने बाकी थे तो वही 31-3-2021 को ऑयलबाँड का शेष जो पुनर्भुगतान किया जाना था वो था 130923•17 करोड रूपये। इस प्रकार मोदी सरकार के 7 साल के शासनकाल मे अब तक सिर्फ 3500 करोड रूपये के ऑयलबाँड का पुनर्भुगतान किया गया है। चालू वित्तवर्ष 2021-22 मे 10000 करोड रूपयो के ऑयलबाँड का पुनर्भुगतान अक्टूबर व नवम्बर 2021 मे जाना हैं।

वही यदि हम पेट्रोलियम उत्पादो से केन्द्र सरकार को होने वाले कर राजस्व की बात करे तो वितवर्ष 2020-21 मे केन्द्र सरकार को कुल 4•18 लाख करोड रूपयो का था जबकि 2021-22 मे कुल राशी करीब 4•50 लाख करोड अनुमानित है, जबकि 2013-14 मे केन्द्र सरकार को पेट्रोलियम उत्पादो से मिलने वाली कुल राशी करीब 1 लाख करोड रूपये प्रति वर्ष ही थी।

यहां यह भी उल्लेखनीय है कि 2014-15 से 2021-22 के मध्य करीब 25 लाख करोड़ रुपए का कर राजस्व केन्द्र सरकार को पेट्रोलियम उत्पादो से प्राप्त होना संभावित है, जबकि इस समयावधि यानी कि 2014-15 से 2021-22 की अवधि मे ऑयलबाँडस् से सिर्फ ₹13500 करोड की राशि का ही अतिरिक्त भार पुनर्भुगतान करने मोदी सरकार को वहन होगा।

यानी की ऑयलबाँडस् के लिए पुनर्भुगतान की गई राशी, पेट्रोलियम पदार्थो पर वसूले गये व वसूले जा रहे करो की राशी के मुकाबले छटांग भर भी नहीं है।

इस प्रकार केन्द्र सरकार के वरिष्ठ मंत्रियों व सत्तारूढ पार्टी के उच्च पदाधिकारियो के बयान कितने तथ्यात्मक,सार्थक व गरिमामय है? का विश्लेषण पाठको को करना है।

सवाल यह भी हैं कि क्या ऑयलबाँडस् के पुनर्भुगतान व ब्याज के कारण उत्पन्न अतिरिक्त आर्थिक भार ही महंगे पेट्रोल डीजल के लिए एकमात्र कारण है, जैसा सरकार प्रचार-प्रसार कर रही है?

 ऐसा तो नहीं कि, जनता को गलत आंकडे पेश करके भरमाया जा रहा है?

जहां तक विभिन्न प्रकार के विशेष बाॅण्डस् जारी करने की बात है, तो मेरा विश्लेषण है कि, आवश्यकतानुसार वित्तीय हालातो के मध्यनजर कमोबेश हर सरकार बाॅण्ड जारी करती रही है चाहे वो वाजपेयी जी के नेतृत्व वाली एनडीए की सरकार हो या मनमोहनसिंह जी के नेतृत्व वाली युपीए की या नरेंद्र मोदी जी की वर्तमान सरकार।

यदि वर्तमान नरेंद्र मोदी सरकार की बात करे तो 2016-17 से 2020-21 की सिर्फ 4 साल की अल्पावधि मे ही करीब 25 लाख करोड के नये ऋण लिए है। वहीं 'सार्वजनिक क्षेत्र के बैंको व अन्य वित्तीय संस्थानो'  मे 'रिकेपिटलाइजेशन' के लिए भी करीब 3 लाख करोड रूपयों  की राशी की स्पेशल सरकारी प्रतिभुतियां व बाॅड जारी किये हैं, जिनका पुनर्भुगतान करीब करीब 2024 के पश्चात ही होना है। इसके अतिरिक्त जीएसटी क्षतिपूर्ति के भुगतान के लिए भी 110208 करोड रूपयो का अतिरिक्त ऋण उधार लिया गया । इस ऋण राशी का भी पुनर्भुगतान भी आगामी वर्षो मे ही होना हैं।

इस प्रकार मेरा मानना है कि देश के सत्तत आर्थिक, सामाजिक व औद्योगिक विकास के लिए निश्चित ही सरकारो को वित्तीय संसाधनो की जरूरत होती है। जो या तो उधारी द्वारा या नई मुद्रा छापकर ही पुरी की जाती है।  

प्रत्येक सरकार की प्राथमिकता महंगाई पर नियंत्रण करना भी मे होता है। उसी के मध्यनजर सरकार को अपनी वित्तीय आवश्यकताओ की पूर्ति के लिए विभिन्न उपलब्ध विकल्पो मे से ही श्रेष्ठ विकल्पों का चयन करना होता है। लेकिन वर्तमान सरकार महंगाई व गरीबी पर नियन्त्रण के साथ ही आर्थिक विकास रोजगार सृजन के महत्वपूर्ण मोर्चो पर भी लगातार असफल रही है।


यदि बाॅण्ड व अन्य प्रतिभुतियो का निर्गमन अमुमन एक सतत प्रक्रिया है तो फिर ऑयलबाँडस् को लेकर अनर्गल बयानबाजी क्यो? 

क्या ऑयलबाँडस् को लेकर हो अनर्गल बयानबाजी के पीछे आर्थिक कुप्रबंधन व नीतियां तो कारण नहीं ? 

क्या वर्तमान सरकार, पूर्ववती सरकारो पर हर मुद्दे का दोषारोपण कर व बुरा भला कहकर अपने राजधर्म का निर्वहन कर पा रही है व चुनी हुई लोकतांत्रिक सरकार की जिम्मेदारी निभा पा रही है ?