'मास्क ही बचाव है' नारा कहीं धोखा तो नहीं ? वैज्ञानिक तथ्यों सहित सरकार दे जवाब



 'मास्क ही बचाव है' नारा कहीं धोखा तो नहीं ?

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'मास्क ही बचाव है' नारा कहीं धोखा तो नहीं ?


कहीं मास्क का मकसद एक सामान्य बीमारी को महामारी में बदलना तो नहीं था ?


कोरोना के आते ही अरबों अरब एन—95 मास्क बिकवाने के बाद संदेहास्पद महामारी के 8 महीने गुजरते ही डब्ल्यूएचओ से लेकर लगभग सभी वैज्ञानिकों एवं चिकित्सकों ने यह स्वीकार करना प्रारम्भ कर दिया कि मास्क से वायरस रूक ही नहीं सकता क्योंकि उसकी पोर साईज वायरस के आकार से लगभग तीन गुना अधिक है।

बाद में कहा गया कि मास्क वायरस को नहीं रोकता परन्तु ड्रापलेट को रोकता है, मान लेते हैं परन्तु ड्रापलेट तो सिर्फ मरीज के खांसने व छींकने से ही निकल सकते हैं और अमेरिका के सीडीसी के अनुसार ऐसा कोई सबूत ही नहीं है कि कोरोना वायरस किसी सतह को छूने से फैल सकता है।

यदि अमेरिका का सीडीसी छूने से वायरस फैलने की पुष्टि नहीं कर रहा है तो फिर कुछ मरीजों के खांसने व छींकने से ड्रापलेट निकलने की आशंका दिखाकर देश के करीब 140 करोड़ लोगों पर मास्क की अनिवार्यता लादने का तथा 'मास्क ही बचाव है' नारे के भीषण प्रचार का आखिर औचित्य क्या है ? वैसे भी इसी कोरोना प्रोटोकाल के अनुसार वायरस युक्त ड्रापलेट यदि हाथ पर लग भी जाए तो साबुन से हाथ धोते ही समाप्त हो जाता है?

एक बात और यदि किसी के खांसने व छींकने की प्रक्रिया से निकलने वाली बूंदों से कोराना फैलता है तो इसका अर्थ है ड्रापलेट में कोरोना वायरस उपस्थित होता है और वो केवल उपस्थित ही नहीं होता है वरन् उसमें इतनी क्षमता भी होती है कि उससे दूसरे व्यक्ति में कोरोना फैल सकता है, तो गले व नाक के अंतिम छोर में स्टिक डालकर स्वाब लेने की कष्टकारी,डरावनी,संदेहास्पद एवं संक्रामक प्रक्रिया आखिर क्यों ? और यदि ड्रापलेट में कोरोना वायरस नहीं होता है या संक्रमण फैलाने की क्षमता में नहीं होता है तो मास्क से बचाव आखिर होगा कैसे ?

कहीं मास्क के भ्रामक प्रोटोकाल के पीछे विदेशी ताकतों,डब्ल्यूएचओ व वैक्सीन माफिया का मकसद एक सामान्य सी बीमारी को महामारी में बदलना तो नहीं था ?


विदित हो कि हम एक मिनट में करीब 16 से 20 बार सांस लेते हैं और हर सांस में हम करीब 400 मिलीलीटर हवा फेंफड़ों में खींचते हैं यानी हम प्रति मिनट करीब 8 लीटर हवा तथा पूरे दिन में करीब 11500 लीटर हवा खींचते हैं।

सांस के रूप में जो हम जो हवा खींचते हैं उसमें 21 प्रतिशत आक्सीजन,0.04 प्रतिशत कार्बन डॉई आक्साईड होती है। जबकि जब हम सांस छोड़ते हैं तो उसमें करीब 16.4 प्रतिशत आक्सीजन एवं 4.4 प्रतिशत कार्बन डॉई आक्साइड होती है। यानी 4.6 प्रतिशत आक्सीजन ही हमारे शरीर के काम आती है बाकी सारी आक्सीजन शरीर से बाहर निकल जाती है और जहां तक कार्बन डाई आक्साइड का प्रश्न है हम मात्र 0.04 प्रतिशत कार्बन डाई आक्साइड लेकर करीब 4.4 प्रतिशत कार्बन डाई आक्साईड बाहर छोड़ते हैं।

कुल मिलाकर बात ये है कि हमारे द्वारा प्रति सांस ली गई 400 एमएल हवा में से 18 एमएल एवं दिनभर में ली गई 11500 लीटर हवा में से करीब 517 लीटर आक्सीजन हमारे शरीर के काम काम आती है।

सामान्य सा विज्ञान है, नाक पर मास्क लगाने से हमारे फेंफड़ों में जाने वाली हवा की मात्रा में कुछ प्रतिशत की कमी तो आती ही होगी,जब फेंफड़ों को हवा कम मिलेगी तो इस हवा में से हमारे खून में मिलने वाली आक्सीजन की मात्रा भी कुछ प्रतिशत तो कम होती होगी,जब आक्सीजन कम पहुँचेगी तो कोशिकाओं के माइट्राकांड्रिया में आक्सीजन व ग्लूकोज की रिएक्शन से बनने वाली ऊर्जा भी कुछ प्रतिशत तो कम बनती ही होगी, जब हमारी कोशिकाओं को लगातार आवश्यकता से कम मात्रा में ऊर्जा मिलेगी, तो ना सिर्फ हमारा सांस फूलेगा वरन् शरीर के अलग—अलग अंगों पर इसका दुष्प्रभाव दिखाई देगा खासकर ब्रेन एवं हार्ट पर । आक्सीजन कमी की यह स्थिति हाईपोक्सिया hypoxia (low oxygen in your tissues) कहलाती है।

इतना ही नहीं कोशिका में ऊर्जा निर्माण के समय जो घातक गैस कार्बन डाई आक्साइड बनती है वो भी जब नाक के माध्यम से हमारे शरीर से बाहर निकलने की कोशिश करेगी तो मास्क के कारण 100 प्रतिशत बाहर नहीं निकल पाएगी और कुछ मात्रा में ये कार्बन डाई आक्साइड हमारी अगली सांस की हवा के साथ पुन: हमारे फेंफड़ों में पहुँचती जाती है जोकि हमारे फेंफड़ों एवं हमारे शरीर की समस्त कोशिकाओं को बीमार और बीमार बना देती है। बचपन में आप सब ने पढ़ा होगा कि कभी भी पूरा मुँह ढक कर नहीं सोना चाहिए ? आखिर क्यों ? कार्बनडाईआक्साईड की अधिकता की यही स्थिति मेडिकल साइंस में हाईपरकैपनिया Hypercapnia(too much carbon dioxide (CO2) in your bloodstream) के नाम से जानी जाती है।

जीव विज्ञान के अनुसार हम एक मिनट में करीब 16-20 बार , एक घंटे में 1200 बार , एक दिन में 28800 बार,एक महीन में 8 लाख 64 हजार बार एवं एक साल में 1 करोड 3 लाख 68 हजार बार इस प्रक्रिया को दोहराते हैं।


आपको क्या लगता है हजारों से लेकर करोड़ो बार तक कम आक्सीजन लेने और अगली सांस में हवा के साथ मास्क में कुछ मात्रा में फंसी घातक कार्बन डाई आक्साइड खींचने से आपके फेफड़े मजबूत बनेंगें या मजबूर ?

इतना ही नहीं मास्क के कारण सांस खींचने और सांस छोड़ते समय फेंफड़ों पर अनावश्यक दबाब पड़ता है जोकि लम्बे समय में फेंफड़ों को निश्चित तौर पर हानि पहुँचाता होगा । साथ ही मास्क में एकत्र होने वाली नमी,ग्लुकोज कण व कार्बनडाईआक्साईड शरीर में फंगल इन्फेक्शन को जन्म देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं ।

मास्क के इस बेहद घातक, अतार्किक प्रोटोकाल के चलते जब आपके फेफड़े मजबूर हो जाएगें तो आपके शरीर में आक्सीजन की कमी हो जाएगी, और जब आक्सीजन की कमी होगी और आपका सांस फूलने लगेगा,आपको अनेक बीमारियाँ घेर लेंगी तो आप पर कोरोना के एक नए वैरिएन्ट का टैग लगाकर आपके व आपके परिवार की जीवन—भर की कमाई लूट ली जाएगी, मृतक के अंग निकाल लिए जाएगें वो अलग।

अंग निकालने की बात कहने के दो मुख्य कारण हैं——
1. ऐसी अनेक पुष्ट/अपुष्ट घटनाएं लगातार सामने आ रही हैं ,
2. मई 2020 में बाम्बे हाईकोर्ट में एक मामले की जाँच व सुनवाई के दौरान कोर्ट ने निर्णय दिया था कि 'ऐसा कोई सबूत नहीं है कि शव से कोराना वायरस का प्रसार हो सकता है या होता है '' बावजूद इसके कोरोना का टैग लगे शवों को प्रोटोकॉल के नाम पर परिजनों द्वारा ना छूने की सख्त हिदायत के साथ पॉलीथीन बैग में पैक करके दिया जा रहा है।

मेरी केन्द्र व राज्य सरकार से अपील है कि या तो मास्क से होने वाली इस विकराल हानि पर अविलम्ब वैज्ञानिक सबूतों के साथ अपना तार्किक स्पष्टीकरण जारी करे अन्यथा डब्ल्यूएचओ के धूर्ततापूर्ण प्रोटोकाल के तहत प्रचारित मास्क लगाने के नियम को रद्द करे।

और हाँ सरकार चुप मत रहो, आपकी चुप्पी से हमें संदेह भी होता है और डर भी लगता है या तो हमारे तर्क का खण्डन करो या इस नियम को रद्द करो।

हमें लगता है कि प्रोटोकाल के नाम से लागू इस अवैज्ञानिक नियम ने इस देश को भयंकर रूप से बीमार बनाने में एक अति—महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है । इस नियम की वजह से लोग हाईपोक्सिया यानी आक्सीजन की कमी व हाईपरकैपनिया यानी कार्बनडाई आक्साइड की अधिकता की समस्या से भयंकर रूप से जूझ रहे हैं, मर रहे हैं । इतना ही नहीं ये समस्या समय के साथ विकराल रूप ले सकती है जिसकी चपेट में हमारी पुलिस फोर्स,डॉक्टर्स जैसे सभी फ्रंटलाईन वर्कर आ सकते हैं।

मैं ना तो भ्रम फैला रहा हूँ और ना ही किसी पर आरोप लगा रहा हूँ, देश के सामान्य नागरिक के रूप में अपनी सामान्य बुद्धि से कुछ सवाल उठा रहा हूँ क्योंकि कुछ सवाल हैं जो मुझ जैसे हजारों हजार लोगों के मन में कोराना प्रोटोकाल, खासकर मास्क लगाने एवं शवों को बिना पोस्टमार्टम पालीथीन पैक करके देने जैसे नियमों के कारण उठ रहे हैं ।


सवाल स्पष्ट हैं —

(1) कोराना वायरस से तीन गुना अधिक पोर साईज के बावजूद मास्क वायरस को रोकने में सक्षम है ? यदि हाँ तो कैसे ? वैज्ञानिक तथ्यों सहित जवाब दें।

(2) क्या कोरोना संक्रमित व्यक्ति के खांसने या छींकने से निकले ड्रापलेट में इतना वायरल लोड़ होता है कि ड्रापलेट किसी अन्य को सं​क्रमित कर सके ? यदि है तो तो नाक व मुह से स्वाब क्यों ? और यदि नहीं तो मास्क क्यों ? वैज्ञानिक तथ्यों सहित जवाब दें।

(3) क्या मास्क से मानव स्वास्थ्य को कोई भी हानि नहीं होती है जैसे हाइपरकैपनिया ,हाईपोक्सिया आदि ? वैज्ञानिक तथ्यों सहित जवाब दें।

अत: केन्द्र सरकार एवं समस्त राज्य सरकारों से मेरा विनम्र निवेदन है कि सवाल का जवाब जरूर दें क्योंकि देश की लाचार जनता लगातार काल के गाल में समा रही है।

और हाँ इस मामले में विश्व स्वास्थ्य संगठन से सवाल किया जाए ? एक सम्प्रभु व आजाद देश होने के बावजूद किसी गुलाम के तरह विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रोटोकाल को कठोरता से बिना किसी प्रश्न के पूरे देश में थोपना,किसी सामान्य नागरिक की समझ से बाहर है ? आखिर डब्ल्यूएचओ से कोई प्रश्न क्यों नहीं किया जा रहा? आखिर इस मामले में संसद एवं विधानसभा में चर्चा क्या नहीं की जा रही ? हमारा अनुरोध है कि डब्ल्यूएचओ से तार्किक जवाब मांगे जाएं, देश की संसद व विधानसभाओं में इस विषय पर व्यापक चर्चा हो तथा देश के वैज्ञानिकों एवं चिकित्सकों से गहन विचार विमर्श किया जाए ?

कुछ भी करो परन्तु इस सच्चाई/भ्रम पर से पर्दा उठाओ वो भी सटीक तर्को के साथ ।

यदि आप ये सब नहीं कर सकते हो तो बंद करो ये नौटंकी। यदि ये नौटंकी है तो ये नौटंकी देश के आम नागरिक को कहीं का नहीं छोड़ेगी । लॉकडाउन,गिरते मनोबल, बीमारी के बिगडते रूप एवं अनिश्चित भविष्य के चलते पूरा देश अनिश्चित काल तक ना खत्म होने वाली आर्थिक गुलामी की ओर तेजी से बढ़ रहा है।

मैं बोल रहा हूँ और अपनी अंतिम सांस तक बोलता रहूंगा क्योंकि

'' मैं अपने महान् देश को शमशान में बदलते नहीं देख सकता हूँ'

हे ! केन्द्र व राज्यों के सत्ताधीशों सवालों के जवाब दो !

क्यों पूरे देश को मरघट में बदलने के दुष्चक्र में अपने को जाने—अनजाने में सहयोगी बना रहे हो।

जागो और बताओ कि आखिर क्या सही है और क्या गलत ?

मेरी देश के न्यायालयों से भी अपील है कि वो स्वप्रेरणा से संज्ञान लेकर सरकारों से जवाब मांगें। न्यायालयों से अभी भी जनता को उम्मीद है,जनता को तो कोई जवाब देना नहीं चाहता।

शुभेच्छु!
अनिल यादव
बैस्ट रिपोर्टर न्यूज,जयपुर।
संस्थापक सदस्य,सत्पक्ष पत्रकार मंच।
9414349467