बांसवाड़ा का 223.71 टन गोल्ड का रिजर्व भी जाएगा विदेशी हाथों में ?

 गोल्ड रिजर्व का निजी या विदेशी हाथों में जाना राष्ट्रहित पर कुठाराघात होगा : जन संप्रभुता संघ



बैस्ट रिपोर्टर न्यूज,जयपुर (अनिल यादव)। राजस्थान के बांसवाड़ा जिले में खोजे गए सोने के भण्डार भूकिया—जगपुरा ब्लॉक एवं कांकरिया गारा ब्लॉक में खनन के लिए राजस्थान सरकार के खान एवं भूविज्ञान विभाग द्वारा 6 मार्च 2024 को एक एनआईटी यानी टेंडर आमंत्रित करने की सूचना जारी की गई है। सूचना के अनुसार 7 मई 2024 को गोल्ड ब्लॉक की नीलामी को अंतिम रूप दिया जाना प्रस्तावित है। 

उल्लेखनीय है कि वर्ष 1990-91 में भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (जीएसआई),जयपुर तथा 10 जनवरी 1966 को पीएसयू यानी सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम के रूप में स्थापित हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड के प्रयासों से राजस्थान के बांसवाड़ा जिले के भुकिया क्षेत्र के करीब 15 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में सोना—तांबा—निकल—कोबाल्ट डिपोजिट (भण्डार) का पता लगाया गया था । 

खनन प्रक्रिया शुरू होने से पहले ही इसके खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका लग गई थी। 29 सितंबर 2023 को राजस्थान हाईकोर्ट ने इस याचिका को खारिज कर दिया। याचिका के खारिज होते ही खनन का रास्ता साफ हो गया है।

विदित हो कि अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के द्वारा 2001 में 'हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड' को विनिवेश कार्यक्रम के तहत बिक्री के लिए रखा गया था परिणामस्वरूप आजकल इसपर वेदांता ग्रुप का आधिपत्य है। ये वही वेदांता ग्रुप है जिसने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली वर्तमान भाजपा सरकार को इलेक्टोरल बाण्ड के माध्यम से करीब 155 करोड़ रूपये चंदे के रूप में दिए हैं। 

राजस्थान में भाजपा सरकार के बनते ही भारत सरकार के खान विभान द्वारा गोल्ड रिजर्व की खोज से जुड़ी इस विस्तृत रिपोर्ट को नक्शे सहित राजस्थान के खान एवं भूविज्ञान विभाग को ई—नीलामी हेतु सौंप दी है तथा केन्द्र से प्राप्त इन्हीं निर्देशों के तहत राजस्थान सरकार के खान एवं भू विज्ञान विभाग ने यह एनआईटी जारी की है । प्राप्त जानकारी के अनुसार ये टेंडर अंतरराष्ट्रीय स्तर के होंगें तथा संभवत: गोल्ड खनन का सम्पूर्ण कार्य किसी ना किसी विदेशी स्वामित्व वाली कम्पनी के पास कौड़ियों के भाव में चला जाएगा ।

प्राप्त जानकारी के मुताबिक सर्वेक्षण के समय 69.658 वर्ग किलोमीटर के तीन ब्लॉक खनन के लिए आरक्षित किए थे। इस क्षेत्र में खनन के दौरान 15 ब्लॉकों के 171 हॉल्स में 46037.17 मीटर ड्रिलिंग करने पर सोने के भंडार का पता चला। यहां करीब 1,34,178 करोड़ रुपए का स्वर्ण भंडार और 7720 करोड़ के तांबे का भंडार है। सोने के कणों के साथ ही तांबा, कोबाल्ट और निकिल भी शामिल रहते हैं। सोने की खदान में तांबा निकलता है। यहां सोने की तुलना में 0.15 फीसदी यानी करीब 1,54,401 टन तांबा है। इसके अलावा कोबाल्ट करीब 13739 टन भंडार हैं। वहीं 11,146 टन निकल के भंडार संभावित हैं। 

भुकिया गोल्ड फील्ड के 15 ब्लॉकों के संबंध में यूएनएफसी 333 श्रेणी के कुल संसाधन (अनुमानित + संकेतित) 1.95 ग्राम/टी एयू के औसत ग्रेड और 0.15% सीयू के साथ 223.71 टन की सोने की धातु के साथ 114.78 माउंट हैं।

विदित रहे कि 01.03.2001 से पूर्व तक भारत में सोने के खनन का कार्य खान मंत्रालय के अधीन आने वाली सरकारी क्षेत्र की कंपनी भारत गोल्ड माइंस लिमिटेड (बीजीएमएल) के पास था। अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के समय जारी एक आदेश के बाद इस कंपनी को घाटे का सौदा बताते हुए बंद कर दिया गया था। 

अपुष्ट सूत्रों के अनुसार खनन से जुड़ी प्रमुख सरकारी कम्पनियों के अधिकारियों को इस टेंडर प्रक्रिया से दूर रहने के निर्देश दिए गए है, अत: संभवत: टेंडर,बोली व नीलामी की प्रक्रिया महज ढ़ोग साबित होने तथा नीलामी किसी खास कम्पनी के पक्ष में छूटने की प्रबल संभावना है। 

प्राप्त जानकारी के अनुसार जिस गोल्ड ब्लॉक को एक बताकर नीलामी की जा रही है उसमें दरअसल कुल 15 ब्लॉक हैं । इतना ही नहीं स्वर्ण की मात्रा भी घोषित सवा दो सौ टन से कई गुना अधिक है । यदि इतना सोने का खनन सार्वजनिक क्षेत्र की किसी कम्पनी द्वारा किया जाता तो देश की अर्थव्यवस्था को जबरदस्त मजबूती मिलती परन्तु निजी क्षेत्र की कम्पनी के पक्ष में नीलामी छूटने पर इसका एक प्रतिशत भी देश के काम नहीं आएगा। 

यदि हम घोषित स्वर्ण 223 टन के महत्व पर विचार करें तो हमें इस तथ्य को भी याद रखना होगा कि हमारे पूरे देश के पास वर्तमान में जो गोल्ड रिजर्व मौजूद है वो 800 टन से भी कम है।  

नागरिक संगठन 'जन संप्रभुता संघ' की मांग है कि इस नीलामी प्रक्रिया को रोका जाए तथा खनन का कार्य सरकारी स्वामित्व वाली कम्पनी राजस्थान स्टेट माइन्स एंड मिनरल्स लिमिटेड (RSMML) के माध्यम से करवाया जाए ताकि सोने जैसी बहुमूल्य घातु का 100 प्रतिशत लाभ देश को मिले नाकि निजी कम्पनी से हिस्सेदारी के रूप में प्राप्त कुछ प्रतिशत । निजी कंपनी को गोल्ड ब्लॉक खनन हेतु आमंत्रित करना निश्चित रूप से राष्ट्र—हित पर कुठाराघात होगा । अंतराष्ट्रीय स्तर पर टेंडर आमंत्रण तथा देश की सरकारी क्षेत्र की खनन कम्पनियों को दूर रखने के अप्रत्यक्ष प्रयास इस बात का संकेत दे रहे हैं कि देश का लाखों करोड़ रूपये का सोना लुटने वाला है तथा राजस्व प्राप्ति व रोजगार सृजन जैसे जुमलों के माध्यम से  देश को इस बेहद महत्वपूर्ण खोज के लाभ से वंचित कर दिया जाएगा।  

उल्लेखनीय है कि राजस्थान स्टेट माइन्स एंड मिनरल्स लिमिटेड (RSMML) उच्च ग्रेड रॉक फॉस्फेट , लिग्नाइट , चूना पत्थर और जिप्सम (गैर-धातु खनिज) के खनन और विपणन में लगा हुआ है। राजस्थान के विभिन्न स्थानों पर. RSMML एक बहु-स्थानीय संगठन है, जिसकी स्थापना वर्ष 1947 में राजस्थान के बीकानेर जिले में स्थापित एक निजी कंपनी बीकानेर जिप्सम लिमिटेड (बीजीएल) से हुई थी। 1969 में झामरकोटरा ( उदयपुर ) में रॉक फॉस्फेट की खोज के बाद , बीजीएल ने झामरकोटरा खदानों का संचालन अपने हाथ में ले लिया। कंपनी के लाभ को बढ़ाने और स्थिर करने के लिए, राजस्थान सरकार ने अधिकांश शेयरों का अधिग्रहण कर लिया और कंपनी का नाम बदलकर राजस्थान स्टेट ऑफ माइन्स एंड मिनरल्स लिमिटेड कर दिया गया । आरएसएमएमएल ने अपने कार्यों को संबंधित खनिजों के अनुसार विभाजित किया है। यह 4 अलग-अलग स्थानों पर 4 खनिजों जिप्सम, रॉक फॉस्फेट, चूना पत्थर और लिग्नाइट के खनन में लगा हुआ है।

जानिए : भारत में सोने की प्रमुख खदानें 

(1) कोलार सोने के क्षेत्र: 

कोलार गोल्ड फील्ड्स (KGF) कर्नाटक में एक खनन क्षेत्र है, जो भारत की सबसे पुरानी और गहरी सोने की खदान के रूप में प्रसिद्ध है। इसकी स्थापना 1880 में अंग्रेजों द्वारा की गई थी और यह 2001 तक संचालित रहा, और अपने जीवनकाल के दौरान लगभग 800 टन सोने का उत्पादन किया। यह खदान अपनी चुनौतीपूर्ण कामकाजी परिस्थितियों के लिए जानी जाती थी, क्योंकि खनिकों को 3.2 किमी तक की गहराई तक उतरना पड़ता था और उच्च तापमान, आर्द्रता और दबाव का सामना करना पड़ता था। पर्यावरण और आर्थिक कारणों से खदान को बंद कर दिया गया था । लेकिन नई तकनीक और निवेश के साथ इसे पुनर्जीवित करने की योजना आज तक पेंडिंग है।


(2) हट्टी सोने की खदानें: 

भारत की सबसे महत्वपूर्ण सोने की खदानों में से एक हट्टी गोल्ड माइंस कर्नाटक सरकार के स्वामित्व वाली कंपनी है जो रायचूर जिले में दो खदानें संचालित करती है: हट्टी और उटी। हट्टी भारत की एकमात्र सक्रिय सोने की खदान है, जो प्रति वर्ष लगभग 1.8 टन सोने का उत्पादन करती है। खदान का इतिहास 2,000 वर्ष से अधिक पुराना है, जैसा कि इसका उल्लेख प्राचीन हिंदू ग्रंथों महाभारत और रामायण में किया गया है। खदान भूमिगत और खुले गड्ढे दोनों खनन विधियों का उपयोग करती है, और इसमें एक प्रसंस्करण संयंत्र है जो प्रति दिन 3,000 टन अयस्क को संभाल सकता है।

(3) सोनभद्र सोने की खदानें: 

सोनभद्र उत्तर प्रदेश का एक जिला है, जहां 2020 में भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (जीएसआई) द्वारा एक विशाल सोने के भंडार की खोज की गई थी। अनुमान है कि इस रिजर्व में 700 मिलियन टन सोने का अयस्क है, जो पांच स्थानों पर फैला हुआ है: सोन पहाड़ी, हरदी, चुरली, परासी और बसरिया। इस भंडार से क्षेत्र की अर्थव्यवस्था और विकास के साथ-साथ देश के सोने के उत्पादन को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है। जीएसआई ने क्षेत्र में अन्य खनिजों की भी पहचान की है, जैसे चांदी, तांबा और लोहा। सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार लोकसभा चुनाव 2024 के बाद इस खदान को भी नीलामी के माध्यम से निजी हाथों में सौंपने की तैयारी है । 

(4) गणजुर सोने की खान: 

गणजुर सोने की खान कर्नाटक में गोवा की सीमा के पास स्थित है। इसकी खोज की गई थी और इसका स्वामित्व निजी कंपनी डेक्कन गोल्ड माइंस के पास है, जिसने वर्षों तक खनन पट्टा हासिल करने का प्रयास किया था। खदान में 2022 में 1.5 टन सोने के वार्षिक उत्पादन के साथ उत्पादन शुरू होने की उम्मीद थी। हालाँकि, खनन पट्टे को 2021 में भारत सरकार द्वारा अस्वीकार कर दिया गया था।

(5) जोन्नागिरी सोने की खदान: 

भारत की पहली निजी स्वामित्व वाली खदान जोन्नागिरी सोने की खान आंध्र प्रदेश में तेलंगाना की सीमा के पास स्थित है। इसका स्वामित्व भी डेक्कन गोल्ड माइंस लिमिटेड कंपनी के पास है। इस खदान में उत्पादन क्षमता 1.2 टन सोने का वार्षिक उत्पादन आंकी गई है। यह खदान भारत की पहली खुले गड्ढे वाली सोने की खदान है। इस खान में काम चालू है व्यावसायिक उत्पादन अक्टूबर 2024 तक शुरू होने की संभावना है।

(6) लावा सोने की खदान: 

झारखंड के चांडिल में स्थित, लावा गोल्ड माइंस भारत की एक कम रेटिंग वाली और कम चर्चित खदान है । हालांकि लावा कुछ अन्य सोने की खदानों जितना प्रसिद्ध नहीं है, लेकिन इसमें अपार संभावनाएं हैं। 

(7) रामागिरी सोने की खान: 

रामागिरी आंध्र प्रदेश का एक शहर है, जहां सोने की खदान पहली बार 1905-27 तक मेसर्स जॉन टेलर एंड संस द्वारा संचालित की गई थी। येरप्पा-गंटालप्पा ब्लॉक के किनारे सोने के अयस्क प्राप्त करने के लिए अंग्रेजों द्वारा खदान का बड़े पैमाने पर उपयोग किया गया था। अनुमान है कि खदान में चार टन सोने के अयस्क के साथ-साथ तांबा, सीसा और जस्ता जैसे अन्य खनिज भी हैं। खदान वर्तमान में एमईसीएल के संरक्षण में है, जो दो दशकों से बंद पड़ी खदान को फिर से खोलने के लिए अन्वेषण और व्यवहार्यता अध्ययन कर रहा है।


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