विरासत का कोई धणी-धोरी नहीं !

जयपुर स्थापना दिवस 18 नवम्बर पर विशेष


लेखक : डॉ.सत्यनारायण सिंह (से.नि.डीआईपीआर राजस्थान)

राजस्थान उच्च न्यायालय ने जयपुर की पहचान व विरासत को बचाने के लिए एक अहम फैसलें से परकोटे की  दीवारों पर निर्माण व  अतिक्रमण पर सख्त रूख लेते हुए आदेष दिया है कि इसके  सेन्टर से पाॅच पाॅच मीटर के दायरे में किसी भी तरह का निर्माण  कार्य नहीं करने दिया जाये व कोर्ट की मंजूरी  के बगैर  मरम्मत भी नहीं की जाये । अदालत ने  नगर निगम  कमिष्नर की अध्यक्षता में एक विषेष सेल बनाने व उसे हर महिने रिपोर्ट देने का निर्देष दिया है । अदालत ने परकोटे की मरम्मत के लिए सरकार को पहले दो चरण के लिए 30.50 करोड़ रूपये की राषि मुहैया कराने के आदेष के साथ यह सख्त आदेष भी दिया है कि परकोटे से सम्बन्धित मुकदमों  में अधीनस्थ  कोर्ट कोई दखल नहीं दे। परकोटे की मरम्मत सम्बन्धी कार्य से स्पेषल सेल अदालत को अवगत कराये।

ष्परकोटा पुराने जयपुर की पहचान है  विरासत है। परन्तु अब  मुख्य  दरवाजों   व बुर्जों  के पास व अंदरूनी भाग में अतिक्रमण व निर्माण हो चुका है। कई स्थानों पर तो परकोटा नजर ही नहीं आता। अवैध निर्माणों व अतिक्रमण के कारण ष्परकोटा क्षतिग्रस्त हो गया है और  इसका अस्तित्व ही खत्म होता जा रहा है । पुलिस व यातायात की चैकियाॅ, दुकाने, मंदिर व पूजागृह, बने हैं, छोटी कोटडिया बन गई हैं। दफ्तर लग गये हैं परकोटे में दुकाने व उसके उपर शो रूम बन गये हैं। कई स्थानों पर दोनो ओर परकोटे  के साथ साथ ऊॅचे ऊॅॅचे भवनों के निर्माण हो गये हैं । इसलिए परकोटा दिखलाई  ही नहीं देता। कई स्थानों पर लापरवाही व मिली भगत के कारण नगर निगम ने इजाजतें दी हैं और निर्माण कराये हैं । अदालत के आदेष से डीपीआर बनी, पो्रजेक्ट  बना व समिति बनी हैं। चार चरणों में इस पर 131 करोड रूपया खर्च होगा। निगम के मुख्य कार्यकारी की देख रेख में विषिष्ठ प्रकोष्ठ कार्य करेगा।

हाई कोर्ट ने जयपुर की पहचान विरासत को बचाने की दिषा में यह अहम कदम उठाया  है। परन्तु पालना कठिन है। सरकार व निगम की लापरवाही, मिलीभगत व मेहरबानी से हुए परकोटे के  बड़े भाग से अतिक्रमण हटाना दुष्कर कार्य होगा, क्योंकि निगम की इजाजतों से निमार्ण व नियमितिकरण हुआ है।  आज तक पूर्व में प्रसारित अदालती आदेषों के अनुसार परकोटा व विरासत संरक्षण का कार्य नहीं हुआ है।

जयपुर शहर की विरासत केा मूलरूप में लोटाने के लिए और भविष्य में और अधिक  बरबाद होने से रोकने के लिए राजनैतिक व प्रषासनिक इच्छा शक्ति की आवष्यकता है। वास्तविकता यह है कि राजधानी बनने के पष्चात जयपुर को कोई धणी-धोरी नहीं रहा। ऐतिहासिक स्थल, इमारते,ं मंदिर, भवन, हवेलियाॅ, चैक, सामुदायिक सार्वजनिक स्थल व भवन सब लगातार बरबाद हो रहे हैं। उसे रोकने के कोई प्रयास नहीं किए जा रहे।

जयपुर के नगर नियोजन में वृत एवं वर्गाकार का बहुत महत्वपूर्ण स्थान था। वास्तुषास्त्र पर आधारित था, वर्तमान पीढी उसके प्रति तिरस्कार की भावना रखती है। जयपुर नगर नियोजन में चीनी नगर  वोटोया व बगदाद की तरह महान सिद्धान्तों का पालन किया गया था। सुव्यवस्थित रूप से बसे जयपुर में सीधी सड़को व सीधी  गलियों  का योगदान महत्वपूर्ण रहा। सडक के दोनों तरफ बसे मकान व बाजार, पैदल चलने वालों के लिए चैडे फुटपाथ, वर्गाकार के दोनों सिरो पर दो चैपड, दोनों चैपडों के मध्य षानदार फब्बारे जनता के आमोद प्रमोद और मिलन स्थल बने । फुटपाथों के नीचे पानी ले जाने के लिए जमीन के बीच बडे बडे नाले, जिसे अतिवृष्टि के समय जनजीवन सामान्य रहे। भवनों का एक अलाइनमेंट, एक डिजाइन, एक रंग, एक उॅंचाई (स्काई लाइन) मुख्य सडक 108 फीट चैडी, अन्य सडकें 54’, 26’, 13-6’’ । सडक  के दोनों तरफ दुकानेां की निष्चित लाम्बाई चैडाई ,दोनों चैपडें के बीच 160 दुकाने, मकानों की ऊॅचाई 54 फुट से ज्यादा नहीं, पर्यावरण, हवा, रोषनी का स्थान रखा गया। सूरज की रोषनी, मुक्त हवा, छज्जे, चारों कोनों पर बडे खम्बे, मेहरावें, छोटी-छोटी नाप की खिड़कियाॅं जयपुर के जलवायु  के अनुरूप। हवेलियों का निर्माण परिवारों की सुरक्षा हेतु। प्रत्येक चैकडी छोटे-छोटे चैकौर मोहल्लों में विभक्त, मुख्य स्थानों पर चैपडों पर सुन्दर मंदिर, प्रत्येक चैकडी में  400 मोहल्ले, मोहल्लों के नाम व्यवसायिकों के नाम। प्रत्येक मौहल्लों में सार्वजनिक चैक व खुले स्थान। जयपुर एक स्मार्ट सिटी था।

इस स्मार्ट सिटी में, जिसमें पर्यावरण, पानी बिजली, पार्किंग, सामुदायिक स्थल , बडे षिक्षा स्थल, कला केन्द्र, पुस्तकालय, खेल के मैदान, ऐतिहासिक स्थल (तालकटोरा, जयनिवास, चैगान, गोविन्द देव मंदिर, सिटी पैलेस, जलेब चैक, सरगासूली, त्रिपोलिया, रामनिवास बाग, अलबर्ट हाल, जगत प्रसिद्ध हवामहल, उसके पष्चात बने मेयो अस्पताल, महाराजा कालेज, महारानी कालेज, गायत्री देवी स्कूल, रामबाग, पैलेस, मोती डॅूगरी, बाडी गार्ड लाइन्स, सवाई मानसिंह अस्पताल आदि ) विषिष्ठ भवन वास्तुकला के नमूने थे।

अब बरामदों व फुटपाथों पर कब्जे, फुटपाथों की समाप्ति कर पार्किंग , बडे प्लाटों व मकानों का माल्स में परिवर्तन, अलाइन्टमेंट, वास्तुकला, स्काई लाईन की समाप्ति, बाजारों के भवनों में वास्तु षिल्प को समाप्त कर मनमाने ढंग से फेरबदल, पुराने दर्षनीय, ऐतिहासिक व सार्वजनिक स्थलों के रख रखाव की अनदेखी नये सरकारी निमार्णों  में पुरानी ष्षैली की अनदेखी, अनियमित अवैध निर्माण व अतिक्रमण, जयपुर की पहचान बन रहे हैं। पार्किंग स्थलों की कमी , बढते थोक व्यापार , व्यावसायिकीकरण व यातायात से प्रतिदिन लगातार जाम, बढती गन्दगी, पब्लिक ट्रांसपोर्ट की असफलता, सार्वजनिक सुविधाओं की कमी जयपुर को पिंक सिटी से  स्टिंग सिटी बना रही है।  विरासत  व हैरीटेज, जयपुर की स्थापत्यकला, जयपुर की पहचान समाप्त हो रहे है।

सरकारें जेडीए व निगम बाहरी क्षेत्रों में आवष्यक-अनावष्यक निर्माण, फैलाव व बदलाव में व्यस्त है। चारदीवारी जयपुर के लिए कोई विकास कार्य नहीं हुआ। क्या अन्दरूनी भाग के अतिक्रमण, अनाधिकृत निर्माण, अवैध व अनियोजित निर्माण को मोरेटोरियम लागू कर नहीं रोका जा सकता? क्या पार्किंग हेतु स्थान निर्धारित नहीं किये जा सकते ? क्या इकतरफा यातायात अथवा नो व्हीकल जोन नहीं बनाये जा सकते ? क्या जयपुर की पहचान चैपडों, ऐतिहासिक स्थलों व भवनों को नहीं बचाया जा सकता? ऐषिया की प्रथम नाट्यषाला रामप्रकाष टाकीज, जलेब चैक, ताल कटोरा ,जलमहल झील, जय निवास, व अन्य स्थानों के रख रखाब पर ध्यान नहीं  दिया जा सकता। सचिवालय में सार्वजनिक स्थल बन रहे हैं  क्या षहर में जनहित में नहीं बन सकते ?

नगरीय विकास मंत्री ने स्वीकार किया है आधे से अधिक सार्वजनिक स्थल व सडकों पर अतिक्रमण है। सभी आवासीय भवनों में स्टोर, बडे माल, व्यवसायिक दुकानें, बहुमंजिली इमारतें बन रही हैं। क्या अतिक्रमण नहीं हटाये जा सकते, क्या निमार्ण  रोके नहीं जा सकते? परन्तु राजनैतिक, प्रषासनिक इच्छा षक्ति नहीं है। बुनियादी मामलों पर सरकार व निगम का ध्यान नहीं है।

पुराने जयपुर को बचाना है तो निर्माण पर मोरेटोरियम (बैन) लगाओं, अवैध थोक व्यापार  को बाहर ले जाओं, यातायात व्यवस्था देखो , ऐतिहासिक स्थलों की देखभाल करो। वास्तुकला, अलाइन्मेंट, स्काई लाईन को बिगडने मत दो। सुविधा स्थल बनाओं, इनके लिए सरकारी व गैर सरकारी स्थलों  को अवाप्त करो। स्वयं के अदालतांे के निर्णयों की पालना करो जिससे वे कागजी निर्देष नही रह जायें, तभी विरासत बचेगी।