महामारी का आना , हकीकत है या फसाना ? वैश्विक षड़यंत्र के विचारणीय संकेत

 
प्रिय देशवासियों!

कृपया नीचे दिए गए कुछ तथ्यों पर गौर फरमाना, यदि जवाब हों तो पूरे देश को बताना और यदि नहीं हो हमारे सुर में सुर मिलाना । सवाल जरूर उठाना और पूछना कि 'महामारी का आना, हकीकत है या फसाना । तथ्य कुछ इस प्रकार से हैं ————

 

1. रॉथ्स्चाईल्ड, रॉकफेलर, एंथनी फाउची, बिल गेट्स, जॉन हापकिंस यूनिवरसिटी, पीएचएफआई (पब्लिक हैल्थ फैडरेशन आफ इंण्डिया) का इस तथाकथित महामारी से क्या संबंध है ? इन लोगों व संस्थाओं पर गंभीर आरोप क्यों लगते रहे हैं ? क्या इन आरोपों में कोई सच्चाई है ? हमारे प्रधानमंत्री देश के वैज्ञानिकों की बजाय बिल गेट्स व डब्ल्यूएचओं के पिछलग्गू आखिर क्यों बने हुए हैं ?

 

2. ये ‘न्यू वर्ल्ड आर्डर’ क्या है जिसका जिक्र गाहे—बगाहे होता रहा है और प्रधानमंत्री मोदी ने भी जिसका जिक्र संसद में अपने भाषण के दौरान खुलेआम किया है वो भी ये कहते हुए कि ‘न्यू वर्ल्ड आर्डर’ आकार ले रहा है तथा कोरोना के बाद ‘न्यू वर्ल्ड आर्डर’ आना ही है, इसे कौन लीड करेगा ये वक्त बतायेगा ।
क्या आने वाले समय में भारत सहित विश्व के सभी विकासशील व अविकसित देशों को विश्व की किसी खास शक्ति की अधीनता स्वीकारने हेतु समुचित माहौल व मजबूत धरातल तैयार किया जा रहा है ? क्या कोरोना का फिल्मी अंदाज में अवतरण इसी मंशा की कोई कड़ी है ?

 

3. 1994 में संजय दत्त की एक हिन्दी फिल्म आई थी 'आतिश'। इस फिल्म के एक सीन में ‘न्यू वर्ल्ड आर्डर’ का एक बड़ा सा बोर्ड दिखाई देता है जिसे दर्शकों ने नज़रअंदाज़ कर दिया लेकिन आज भारत की संसद तक में यह शब्द गूंज रहा है । क्या ये महज संयोग है या हमारी आजादी को निगलने के लिए कोई भयानक प्रयोग बेहद तेज गति से जारी है ?

 

 

4. आज से करीब 25 वर्ष पहले 1996 में एक हॉरर उपन्यास छपता है 'द आईज आफ डार्कनेस'। उपन्यास आज भी अमेजन पर उपलब्ध है। इस उपन्यास में आज चारों ओर प्रचारित कोरोना वायरस का ज़िक्र किया गया है। ये कैसे सम्भव हुआ ? स्पष्ट है कि कोरोना नया वायरस नहीं है । जब ये नया वायरस नहीं था तो देशी विदेशी ताकतों ने इस बीमारी के प्रारम्भ में पोल ना खुलने तक इस वायरस को नया बताकर क्यों प्रचारित किया ? पोल खुलने के बाद क्यों बताया कि ये वायरस नया नहीं है, वो नये रूप में अपग्रेड होकर आया है,पहले ही सच क्यों नहीं बताया?

 

5. आज से करीब 10 साल पहले 2011 में एक फिल्म आती है जिसका नाम था 'कानटेजियन'। इस फिल्म की पूरी कहानी आज फैली संदेहास्पद बीमारी कोरोना जैसे वायरस के इर्दगिर्द बिलकुल हूबहू गढ़ी हुई है। ये कैसे संभव है ? यदि इस फिल्म की कहानी किसी क्रिएटिव राईटर की उपज थी तो ये क्यों नहीं हो सकता कि इस कहानी ने किसी क्रिएटिव पूंजीपति को एक बेहद नया व क्रिएटिव आईडिया दिया हो ? ये भी हो सकता है ये फिल्म जनता को ऐसी किसी महामारी के प्रोटोकॉल के लिए मानसिक रूप से तैयार करने के लिए स्वयं किसी बेहद क्रिएटिव पूंजीपति ने बनवाई हो। मैं ये बात इसलिए लिख रहा हूँ क्योंकि इस फिल्म का ज़िक्र 'बिल गेट्स' ने एक खास कार्यक्रम में लोगों को ये चेतावनी देते हुए किया था कि आने वाले दशक में विश्व को एक बेहद ख़तरनाक महामारी के लिए तैयार रहना होगा। कोई बात नहीं चेतावनी तो कोई भी दे सकता है परन्तु याद रखें कि ये चेतावनी 2015 में दी गई थी वो भी 2011 की फिल्म 'कानटेजियन' का जिक्र करते हुए । आखिर बिल गेट्स ने ये चेतावनी किस आधार पर दी थी,उन्हें इसकी आशंका कैसे थी ?

 

6. 2015 के बाद से ही विश्व के अधिकांश देशों में उन मेडिकल डिवाईसेज व टैस्ट किट्स का स्टोरेज प्रारम्भ कर दिया जिनका प्रयोग आज इस तथाकथित महामारी के समय में सबसे ज्यादा किया जा रहा है। आरटी—पीसीआर टैस्ट उनमें से एक है। 2017 व 2018 में भारत सहित विश्व के लगभग सभी देशों में, खासकर अविकसित व विकासशील देशों में ये टैस्ट किट खरीदे गए । विश्व बैंक की साईट के भीतरी हिस्सों में जाने पर ये जानकारी आज की तारीख तक उपलब्ध है। हमने कुछ दिन पहले स्वयं इसे डाउनलोड किया है। महामारी आने से 2 से 3 साल पहले हुई ये विश्वव्यापी खरीद यह संदेह पैदा करने के लिए काफी है कि बीमारी को महामारी बनाने की व उससे बचाने का झांसा देकर अपना माल बेचने की, हर देश में उसका पूरा स्टाक रखने की तैयारी काफी पुरानी है । इस तैयारी में विश्व बैंक, डब्ल्यूएचओ, यूएन एवं इन सबको प्रभावित करने की क्षमता रखने वाले देशों के कुछ खास पूंजीपतियों जैसे— रॉकफेलर,बिल गेट्स,रॉथ्स्चाईल्ड आदि आदि की भूमिका निश्चित तौर पर संदेह पैदा करती है।

 

7. कोविड—19 के पहले केस के आने से करीब ढाई महीने पहले 18 अक्टूबर 2019 को न्यूयार्क के होटल पेरियर में बिल व मिलेंडा गेट्स फाउनडेशन, विश्व आर्थिक मंच एवं जॉनस् हापकिंस ब्लूमबर्ग स्कूल ऑफ पब्लिक हैल्थ के संयुक्त तत्वावधान में एक अंतर्राष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस हुई। इस कॉन्फ्रेंस का नाम था —

 

'' इवेन्ट—201 : ए ग्लोबल पैनडेमिक एक्सरसाईज'' हिन्दी में कहें तो '' कार्यक्रम 201 : एक वैश्विक महामारी का अभ्यास'' ।

 

इस कॉन्फ्रेंस का टाईटल ही बहुत कुछ कहता है । हमने इसे आयोजन कहा है परन्तु कुछ लोग इसे कृत्रिम वैश्विक महामारी की योजना या षड़यंत्र को अंतिम रूप देने हेतु बुलाई गई बैठक मानते हैं। विदित हो कि इस बैठक के करीब ढाई महीने बाद पूर्ण तैयारियों के साथ डब्ल्यूएचओ के माध्यम से विश्व के सामने कोविड—19 वायरस के केस की पहली वैधानिक घोषणा की गई, 31 दिसम्बर 2019 को, जिसमें चीन के वुहान शहर को वायरस का केन्द्र बताया गया । ध्यान रहे वुहान की इस लैब में भी बिल गेट्स व एंथनी फाउची की आर्थिक भागीदारी बताई जाती रही है । अमेरिका की सीनेट में फाउची पर सीधे आरोप लगाये जा रहे हैं, इटली की सांसद ने बिल गेट्स को वैक्सीन अपराधी बताया है ।

 

——18 अक्टूबर 2019 को हुए '' इवेन्ट—201 : ए ग्लोबल पैनडेमिक एक्सरसाईज'' नामक इस संदेहास्पद आयोजन में भाग लेने वाले लोगों में विश्वभर के डाक्टर या वैज्ञानिक होते तो शायद इतना संदेह नहीं होता, परन्तु यदि हम इसके आयोजक की लिस्ट को देखें तथा इसमें भाग लेने वाले लोगों के व्यवसाय को देखें तो हमारा संदेह और अधिक गहरा हो जाता है। आयोजक थे—— बिल व मिलेंडा गेट्स फाउनडेशन, विश्व आर्थिक मंच एवं जॉनस् हापकिंस ब्लूमबर्ग स्कूल आफ पब्लिक हैल्थ । आयोजन में भाग लेने वाले थे, विश्व व्यापी होटल चेन 'मैरिएट' के सीईओ, लुफ्तांसा एयरलाइंस के सीईओ, मीडिया टाईकून, साफ्टवेयर व्यसाय से जुड़े लोग एवं विश्व के लगभग सभी बड़े बड़े बैंकर्स ।

 

इस ईवेन्ट 201 या यूं कहें षड़यंत्र में तय योजना को मूर्तरूप देने के लिए संभवत: कुछ खास कदम उठाये गये——————

(1) बीमारी को महामारी दिखाने एवं मौतों को वास्तविक दिखाने के मकसद से कुछ खास ताकतवर देशों की एजेंसियों ने अपने—अपने देश में विभिन्न बीमारियों से मरे लोगों को कोरोना से मरा घोषित करना प्रारम्भ किया ताकि ताकतवर देशों की तबाही को देखकर कमजोर देश स्वत: ही भयभीत हो जाएं । मैने यह कल्पना कुछ दिन पूर्व सीडीसी(यूएसए) द्वारा जारी उन आंकड़ों को देखकर की है जिनमें ये बताया गया है कि अमेरिका में मृत लाखों लोगों में से 94 प्रतिशत लोगों की मौत का कारण अन्य बीमारियाँ थी ना कि कोराना वायरस, केवल 6 प्रतिशत मौतों के लिए ही कोरोना को जिम्मेदार माना जा सकता है । 13 जुलाई 2020 को जारी सीडीसी अमेरिका के एक दस्तावेज के पेज 39 में माना कि कोरोना वायरस को आइसोलेट यानी पृथक ही नहीं किया गया है अत: कोई कोविड—19 वायरस नहीं है। स्पष्ट है कि 94 प्रतिशत लोगों की मृत्यु अन्य बीमारियों के कारण होने की सच्चाई के बावजूद उन्हें किसी खास निर्देश के कारण कोरोना से हुई मौतें प्रदर्शित कर दिया गया, ताकि मौत का डर बढ़े ।

 

(2) कुछ खास लोगों के इशारे पर डब्ल्यूएचओ को टूल बनाकर लगातार प्रेस कांफ्रेस आयोजित की गईं तथा विश्व भर में मीडिया एवं स्थानीय सत्ताधारीयों के माध्यम से सामान्य सी बीमारी को महामारी बताकर डर का वातावरण बनाया गया ताकि पूरे विश्व में जीवन रक्षा के नाम पर दवाओं, उपकरणों, मास्क, सैनेटाईजर, ऑक्सीजन, वैक्सीन आदि का एक अभूतपूर्व बाज़ार तैयार किया जा सके वो भी जनता द्वारा धूर्तता से डराकर ली गई स्वीकृति के आधार पर ।

 

(3) मौतों का स्वांग रचने के बाद डब्ल्यूएचओ के माध्यम से ईलाज के नाम पर एक बेहद अवैज्ञानिक, अतार्किक, जानलेवा एवं सामाजिक ताने बाने को छिन्न—भिन्न करने वाला 'प्रोटोकॉल' पूरे विश्व पर, खासकर विकासशील व अविकसित देशों पर कठोरता से थोपा गया । ताकि भविष्य में लोग इम्यूनिटी कम होने के कारण वास्तव में बीमार होने लगें तथा इस बीमारी को अलग—अलग चरणों या वैरियंटस के नाम से निरंतर प्रचारित कर व्यापार किया जा सके। दमघोटू मास्क की थ्योरी, कैंसरकारक सैनेटाईटर की थ्योरी, लोगों का मनोबल तोड़ने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग की थ्योरी, विश्व के अविकसित व विकासशील देशों की अर्थव्यवस्थाओं को छिन्न—भिन्न करने व कंगाली के स्तर तक लाने के लिए लॉकडाउन की थ्योरी, षड़यंत्र की पोल ना खुल सके इसके लिए शवों के पोस्टमार्टम ना करने की थ्योरी, विश्व—भर में अंग व्यापार की मांग की पूर्ति हेतु शवों को परिजनों को ना सौंपकर पालिथीन पैक कर सीधे स्थानीय सत्ताओं द्वारा अंतिम संस्कार की थ्योरी; ना सिर्फ सुझाई गई वरन् प्रचारित व सख़्ती से कार्यांवित भी की गई। देश के कुछ लालची राक्षस किस्म के चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े लोगों ने इस आपदा में भी अवसर ढूंढ निकाले, उनके लालच ने भी मौतों के आंकड़ों को बढ़ाने में भारी योगदान दिया ।

 

(4) कोरोना के तथाकथित वायरस की पोल ना खुल सके इसके लिए शव से संक्रमण का जबरदस्त भय दिखाकर पूरे विश्व में शवों के पोस्टमार्टम पर रोक लगा दी जबकि बीएस 2 या बीएस 4 लेवल की लैब में भयंकर से भयंकर वायरसों पर काम किया जाना सामान्य सी बात है। चयनित शवों का इस लेवल की लैब में पोस्टमार्टम सरलता से किया जा सकता था। वैसे भी मृत शरीर से कोराना वायरस फैल ही नहीं सकता, इसके प्रमाण भी लगातार सामने आ रहे हैं।

 

(5) कोरोना की भावी लहरों की संभावनाओं को मूर्त रूप देने के क्रम में 'मास्क' को बचाव के हथियार के रूप में प्रचारित किया गया ताकि लगातार मास्क प्रयोग से लोगों में ऑक्सीजन की कमी होने लगे और भविष्य में उन्हें कोरोना की नई लहर के शिकार के रूप में प्रचारित किया जा सके। मास्क के पक्ष में दिए गए सभी तर्क बेहद खोखले हैं, मास्क की पोल कोरोना जाँच हेतु अपनाई जाने वाली प्रक्रिया स्वयं ही खोल देती है। ज़रा विचार करें यदि दावे के अनुसार किसी के खांसने व छींकने की प्रक्रिया से निकलने वाली बूंदों से कोरोना फैलता है तो इसका अर्थ है कि ड्रॉपलेट में कोरोना वायरस उपस्थित होता है और वो केवल उपस्थित ही नहीं होता है वरन् उसमें इतनी क्षमता (वायरल लोड ) भी होती है कि उससे दूसरे व्यक्ति में कोरोना फैल सकता है। यदि ऐसा है तो गले व नाक के अंतिम छोर में स्टिक डालकर स्वाब लेने की कष्टकारी, डरावनी, संदेहास्पद एवं संक्रामक प्रक्रिया आखिर क्यों ? और यदि ड्रॉपलेट में कोरोना वायरस नहीं होता है या वो संक्रमण फैलाने की क्षमता में नहीं होता है तो मास्क से बचाव आखिर होगा कैसे ?

 

यही हाल सैनेटाईजर का है, यदि सैनेटाईजर या साबुन से कोरोना का वायरस मर जाता है तो पीपीई किट के नाम पर अरबो रूपयों की लूट क्यों की गई। प्रकृति को गंभीर हानि क्यों पहुँचाई गई ? पीपीई किट को सैनेटाईजर या साबुन के घोल में डुबोकर रि—यूज क्यों नहीं कर लिया गया ? यदि इससे कोरोना वायरस नहीं मरता है तो जनता को सैनेटाईजर के नाम पर भ्रमित क्यों किया गया ?

 


(6) बीमारी को लाइलाज बताकर विश्व में प्रचलित ईलाज की सभी परम्परागत पद्धतियों पर प्रतिबंध लगा दिया गया, यहाँ तक की विश्व के समस्त एलौपैथिक डॉक्टरों को भी डब्ल्यूएचओ द्वारा बताए गए प्रोटोकॉल का गुलाम बना दिया गया। डब्ल्यूएचओ का प्रोटोकॉल कितना विश्वसनीय था इसका प्रमाण डब्ल्यूएचओ के प्रतिदिन बदलते निर्देशों से ही मिल जाता है । सच तो ये लगता है कि फार्मा कम्पनियों के हित में जनता को ठगने के लिए संभवत: एक खास पैटर्न अपनाया गया। इस पैटर्न के अनुसार——— झूंठी व प्रतीकात्मक रिसर्चों का हवाला देकर किसी खास फार्मा प्रोडेक्ट का धुआंधार प्रचार किया गया, फिर उसका अभूतपूर्व व्यापार किया गया एवं अंत में उसकी प्रभावशीलता से इनकार कर दिया गया । एन—95 मास्क, सैनेटाईजर, हाईड्रोक्लोरोक्वीन, प्लाज्मा थैरेपी, स्टेरॉइड थैरेपी, रेमेडेसीवीर इंजेक्शन और ना जाने कितनी ही दवा व थैरेपी के मामले ऐसे हैं जिन्हें पहले संजीवनी की तरह पेश किया, फिर जनता में उन्हें 50—50 गुुना कीमतों पर बेचा गया और लूट का टार्गेट पूरा होते ही उनकी प्रभावशीलता से इनकार कर दिया गया। सवाल उठता है कि वो कौनसे रिसर्च थे जिनके आधार पर इस जानलेवा ठगी को अंजाम दिया गया ? उन रिसर्च को करने वाले कौन थे ? उनकी पृष्ठभूमि क्या है ? उनके सैम्पल साईज़ क्या थे ? ऐसे कोई रिसर्च थे भी या यूं ही जनता को मूर्ख बनाने के लिए रिसर्च शब्द की आड़ ली गई थी। और यदि रिसर्च बेहद विश्वसनीय थे तो जनता को लूटने के बाद वो रिसर्चकर्ता बदल क्यों गए ? गायब कहां हो गये ? क्यों ना इन पर एवं इनके प्रमोटरों पर ठगी का मुकदमा चलाया जाए ?

 

(7) विश्व के विकासशील व अविकसित देशों की अर्थव्यवस्थाओं को तबाह करने के छिपे उद्देश्य से तथाकथित कोरोना चेन को तोड़ने के नाम पर 'लॉकडाउन' की वकालत की गई। कठोर लॉकडाउन ने पूरे देश की कमर तोड़ कर रख दी, उत्पादन बंद हो गया, बचत खत्म हो गई, महंगाई ने जिंदा रहने को ही विकास बना दिया। फर्क सभी पर पड़ा परन्तु गरीब व मध्यमवर्ग के लिए ये अकल्पनीय पीड़ा का दौर बन गया। बर्बाद देशों के सत्ताधीशों ने कोरोना के नाम पर षड़यंत्र की रचियता वैश्विक संस्थाओं से भारी भरकम ऋण लिया और आपदा में अवसर मानते हुए इस ऋण की अधिकांश राशि को खुर्दबुर्द कर दिया। कोई हिसाब नहीं है, ना किसी ने हिसाब मांगा, ना किसी ने दिया, सब गोलमाल है। लॉकडाउन से कोई चेन—वेन नहीं टूटती है, सिर्फ देश की कमर टूटती है । वैसे भी जब सतह को छूने से या संक्रमित व्यक्ति के मुँह से निकली ड्रॉपलेट या बूंदों से कोरोना फैलने की पुष्टि करने वाली कोई स्पष्ट रिसर्च है ही नहीं तो लॉकडाउन सिर्फ धोख़ा है। वर्षों से जन—समस्याओं से विमुख सरकारों द्वारा बनाए गए बेहद लचर आधारभूत ढाँचे के कारण फैली अराजकता से बचने के लिए और अपनी नाकामियों पर पर्दा डालने की नीयत से सरकारों में बैठे करोड़पति नेताओं ने लॉकडाउन को हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया है, बिना ये सोचे की पेट पर लॉकडाउन नहीं लगाया जा सकता है। लॉकडाउन ने विदेशी कम्पनियों को फायदा पहुँचाया है जैसे अमेजन, फ्लिपकार्ट, माइक्रोसॉफ्ट, आई.टी. व डिजिटल मनी ट्रांसफर से जुड़ी चुनिन्दा विदेशी कम्पनियों ने देश के पूरे व्यापार पर कब्ज़ा कर लिया है और आम व्यापारी चोर की तरह व्यापार करने को मजबूर हो गया है । गरीब लोग भूख से मर रहे हैं और ए.सी. में बैठकर करोड़पति नेता व अफसर 'लॉकडाउन' को आपदा में अवसर मानकर उसका गुणगान करते नहीं थक रहे हैं।

 

(8) इस तथाकथित महामारी का आवश्यकता से अधिक भय दिखाकर कोरोना के अतिरिक्त अन्य सभी बीमारियों से ग्रसित लोगों को बलि का बकरा बनाकर मरने के लिए छोड़ दिया और जब किसी भी अन्य कारण से उनकी मौत हो जाए तो उस मौत के आंकड़े को आईसीएमआर की गाइडलाईन का हवाला देते हुए कोराना के खाते में जबरदस्ती जोड़ लिया । मौत के अर्ध-सत्य आँकड़ों को देखकर जब लोगों की आँखों में मौत का खौफ तैरने लगा तो उन्होंने वैक्सीन से ही बचाव का शगूफा छोड़ा, ट्राईल की नौटंकी की तथा अंत में कहा कि वैक्सीन बन गई है । हमने नौटंकी शब्द का प्रयोग एक घटना को नजदीकी से देखकर किया है, इस घटना का किरदार है सीरम इनस्टीट्यूट, पूना का मालिक अदार पूनावाला जोकि हाल ही में भारत सरकार द्वारा दी गई वाय सुरक्षा के बावजूद लंदन भाग गया, जिसे गोदी मीडिया कुछ दिन के लिए लंदन शिफ्ट होना बता रही है तथा इस तथ्य को छिपा रही है कि पूनावाला वैक्सीन के नाम पर बैंकों का करीब साढ़े तीन हजार करोड़ रूपये का चूना लगाकर फरार हुआ है, शिफ्ट नहीं । अदार पूनावाला ने एबीपी न्यूज के साक्षात्कार में बताया कि उनकी कम्पनी ने बहुत बड़ा रिस्क लेते हुए मार्च—अप्रेल 2020 में ही कोविशील्ड वैक्सीन की 5 करोड़ डोज बनाकर रख ली थीं। अब सवाल ये है कि मार्च—अप्रेल 2020 में वैक्सीन बनी कैसे ? जबकि प्रारम्भ में भ्रामक रूप से स्वदेशी घोषित इस वैक्सीन की वास्तविक निर्माता कम्पनी एस्ट्राजेनेका आक्सफोर्ड से सीरम इनस्टीट्यूट का समझौता तो जून 2020 में हुआ था यानी करीब दो महीने बाद तथा इस वैक्सीन के तृतीय फेज़ के ट्राइल की नौटंकी तो नम्बर 2020 में हो रही थी । इस समझौते में एक पक्ष बिल एण्ड मिलेन्डा गेट्स फाउनडेशन भी है जिसने करीब 22 हजार करोड़ रूपये का निवेश किया हुआ है, क्यों किया होगा समझदारों को इशारा ही काफी है। अब देखिए यदि वैक्सीन की 5 करोड़ डोज़ मार्च अप्रेल में ही तैयार थी तो इसकी ट्राईल की नौटंकी नवम्बर में क्या जनता की आँखों में धूल झोंकने के लिए थी ? अब हम पुन: इस प्रश्न पर आते हैं कि मार्च—अप्रेल में ही सीरम इन्सटीट्यूट ने 5 करोड़ वैक्सीन डोज़ आखिर बना कैसे ली ? मेरे संदेह के अनुसार इतनी जल्दी वैक्सीन इसलिए बन सकी क्योंकि वास्तव में इस वैक्सीन व इस जैसी कई प्रचारित वैक्सीनस का फार्मूला इस संदेहास्पद बीमारी के प्रथम केस के आने से बहुत पहले ही बनाया जा चुका था तथा वैक्सीन के संबंध में अलग—अलग देशों में अलग—अलग कम्पनियों से समझौते की तैयारी की तथा समझौतों से पहले ही ताबड़तोड़ वैक्सीन निर्माण प्रारम्भ कर दिया गया ताकि डिमांड क्रिएट होते ही वैक्सीन का व्यापार किया जा सके। भारत में भी 16 जनवरी 2021 से वैक्सीनेशन अभियान प्रारम्भ किया गया, हालाँकि ये भी एक तथ्य है कि वैक्सीनेशन बढ़ने के साथ ही कोरोना संक्रमण के केस भी तेजी से बढ़ने लगे, पूरे देश की स्वास्थ्य व्यवस्था गडबड़ा गई। हॉल ही में 2008 के नोबल पुरस्कार विजेता फ्रेंच वैज्ञानिक ल्यूक मान्टेग्नियर ने वैक्सीनेशन को कोरोना के नए वैरिएंट की वजह बताया तथा वैक्सीनेशन को गम्भीर मेडिकल भूल कहा है। वैक्सीन अभियान छेड़ते समय जानबूझकर या अनजाने में सरकार लोगों को ये बताना भूल गई की वैक्सीन लेने वाला व्यक्ति वैक्सीनेशन के बाद अपने आस—पास के लोगों के लिए बेहद खतरनाक सुपर—स्प्रेडर बन जाता है अत: वैक्सीनेशन के बाद उसे कम से कम 14 दिन के लिए कोरन्टाईन रहना अनिवार्य है । सरकार की इस गलती की वजह से वैक्सीनेटेड लोगों ने अनजाने में ही इस बीमारी के आंकड़े बढ़ाने में ज़बरदस्त भूमिका निभाई । सीडीसी अमेरिका की हाल ही में प्रकाशित एक रिपार्ट ने वैक्सीन के बाद अमेरिका में करीब सवा दो लाख लोगों के साइड इफेक्ट की पुष्टि की है, भारत में भी हजारों की संख्या में मौतों एवं गम्भीर साइड इफेक्ट की शिकायतें आ रही हैं हालाँकि सरकार इन शिकायतों पर पर्दा डालने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है; परन्तु वैक्सीन की एक या दो डोज लेने के बाद भी हुई 500 से अधिक डॉक्टरों की मौतों ने वैक्सीन की प्रभावशीलता पर संदेह को पुष्ट किया है। वैसे हमारी जानकारी के मुताबिक भारत सरकार ने जानबूझकर ऐसा कोई पोर्टल नहीं बनाया है जिसपर वैक्सीन लेने वाले लोगों द्वारा स्वयं के स्तर पर वैक्सीन के दुष्प्रभाव या मौत का डेटा दर्ज किया जा सके । ऐसा सम्भवत: इसलिए किया गया है ताकि वैक्सीनेशन की साख पर कोई सवाल ना उठे। सरकार वैक्सीन के प्रचार की जिम्मेदारी बखूबी निभा रही है परन्तु उसके दुष्प्रभावों पर विचार करने को तथा दुष्प्रभावों की जिम्मेदारी लेने के लिए लेशमात्र भी तैयार नहीं है। इसके उलट वो वैक्सीन कम्पनियों को कानूनी कार्यवाही से बचाने का आश्वासन देने में तनिक भी नहीं शर्मा रही है, कोविशील्ड के संबंध में अदार पूनावाला को संरक्षण दिया गया , वहीं 27 मई 2021 को ही फाईजर की इसी प्रकार की शर्त को स्वीकार कर लिया गया है जिसके अनुसार फाईजर की वैक्सीन से हुए साइड इफेक्ट पर भारत में अदालती कार्यवाही नहीं होगी, भारत सरकार फाईजर को कानूनी संरक्षण देगी जबकि जनता को ठेंगा । मेडिकल की बाईबल माने जाने वाले जनरल 'लैंसेट' की हाल ही में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार जिन वैक्सीन्स की प्रभावशीलता 65 से 95 प्रतिशत तक बताकर प्रचारित किया जा रहा है,वास्तव में ये अर्ध-सत्य है जोकि रिलेटिव रिस्क रिडक्शन को हाईलाईट करता है, शेष सत्य ये है कि यदि हम एबसल्यूट रिस्क रिडक्शन की बात करें तो कोविडशील्ड की प्रभावशीलता मात्र 1.3 प्रतिशत, मॉडेर्ना व जॉनसन एण्ड जॉनसन की मात्र 1.2 प्रतिशत और फाइजर की मात्र 0.84 प्रतिशत ही है। वैक्सीन से ब्लड में क्लोटिंग हो रही है जिससे लोगों को हार्ट अटैक व न्यूरोजिकल दुष्प्रभावों व पैरेलिसिस जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है । ऐसी भी आशंका लगातार व्यक्त की जा रही है कि इससे मानव के डीएनए में परिवर्तन आ सकता है । यह आशंका निराधार नहीं है फाइजर की वैक्सीन के विवरण में ये बात खुलेआम लिखी हुई है, कोविशील्ड में भी जीएमओ के नाम से ये बात संकेत रूप में दर्ज है । भारत में वैक्सीन की दोनों डोज़ लगवाने के बाद होने वाली मौतें चीख—चीख कर वैक्सीन की प्रभावशीलता पर प्रश्न चिह्न लगा रही हैं परन्तु सरकार के पास कोई तार्किक जवाब नहीं है। आज भी भारत सहित दुनिया भर की सरकारें वायरस के म्यूटेशन के आधार पर तीसरी लहर का डर दिखाकर बच्चों के लिए फाइजर की आने वाली उस वैक्सीन का बाज़ार तैयार करने में तनमयता से जुटी हैं जिसको तीसरी लहर की घोषणा के बाद बमुश्किल एक सप्ताह में ही तैयार किया जा चुका है, तीसरी लहर आएगी या नहीं इसकी गारंटी ही नहीं है । वैसे भी एक रिपोर्ट के अनुसार किसी भी वायरस का नया वैरिएन्ट अपने पिछले वैरिएन्ट से बमुश्किल 0.3 प्रतिशत ही अलग होता है जैसे किसी किताब का नया संस्करण अपने पुराने संस्करण से मामूली ही अलग होता है, अत: नये वैरिएन्ट के शगूफे का मकसद सिर्फ लोगों में डर बनाए रखना है ताकि वैक्सीन की आगामी खेप को खपाया जा सके। मीडिया इस डर को बढ़ाने में बेशर्मी की हद तक लगी हुई है। वो वैरिएंट का जिक्र इस तरह करती है जैसे कोई नया राक्षस आ गया है।

 

ईवेन्ट 201 या यूं कहें षड़यंत्र 201 में तय योजना को मूर्तरूप देने के लिए उठाए गए खास कदमों को सफलतापूर्वक या यूं कहें आशा से भी अधिक कुशलता से सम्पन्न करने में विश्व के अलग—अलग देशों के महाभ्रष्ट राजनेताओं, प्रशासकों, चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े तथाकथित भगवानों, मलाई चाट रही अधिकांश मीड़िया के देशभक्तों एवं एफएमसीजी सैक्टर से जुड़े जमाखोर लोगों ने अपनी अति—महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सभी ने कोढ़ में खाज का काम किया और पूरे देश व विश्व में अभूतपूर्व लूट से हाहाकर मच गया । तथाकथित लाइलाज बीमारी से मौत का डर दिखाकर देश भर के अधिकांश अस्पतालों व चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े लोगों ने आपदा में अवसर ढूंढ निकाला और ईलाज व दवाओं के नाम पर लाखों रूपये लूटने का व आर्गन ट्रेड का बेरहम खेल शुरू कर दिया। कुछ दवाओं व थैरेपियों को जानबूझकर जीवन रक्षक घोषित किया व उनकी कालाबाजारी से अकूत धन कूटा गया । यहाँ तक कि एम्बूलेंस सेवा से जुड़े कुछ गिद्दों ने एवं शमशान घाट के सौदागरों ने भी मौके पर चौका लगाने का कोई मौका नहीं छोड़ा। मौत के डर ने जनता की अक्ल पर भी लॉकडाउन लगा दिया जबकि मोदी जी ने स्वयं अपने भाषण में इसकी मृत्यु दर 10 लाख में से 83 बताई थी, भास्कर में हाल ही में प्रकाशित खबर के अनुसार मार्च 2020 से अब तक तथाकथित पहली व दूसरी लहर को मिलाकर पूरे देश में 5 लाख मौते हुई हैं यानि 10000 में से दो । ये दो मौत भी कोरोना में दर्ज की गई हैं वो मौत कोरोना से हैं या अन्य किसी कारण से सिर्फ कोरोना में दर्ज हैं इस बात की भी कोई गारंटी नहीं है। अन्य बीमारियों की अपेक्षा इतनी कम मृत्युदर के बावजूद पूरे देश में इतनी दहशत फैलाना तर्क की कसौटी पर चाह कर भी हज़म नहीं किया जा सकता है। अंत में हमारे ज़हन में एक ही सवाल उठता है ?

 

''महामारी का आना,हकीकत है या फसाना''

 

नोट: लेख में दिए गए तथ्य व ब्यौरे यथासंभव जांचे परखे एवं विश्वसनीय हैं, तथापि एक पत्रकार की अपनी सीमाएं होती हैं, अत: एक मामूली पत्रकार के रूप में किसी तथ्य में हुई मानवीय भूल हेतु लेखक को जिम्मेदार मानने की बजाय लेख में मौजूद तथ्य व ब्यौरे पर भारत सरकार व उसकी जिम्मेदार एजेंसीयाँ जाँच कराये तथा सभी संदेहों को दूर करने हेतु प्रत्येक बिन्दु पर एक विस्तृत स्पष्टीकरण जारी करे। लेख का उद्देश्य भ्रम फैलाना नहीं, जागरूकता फैलाना एवं अपने मन में मौजूद संदेहों पर सरकार से प्रतिउत्तर चाहना है। सरकार द्वारा प्रतिउत्तर ना देना जनता में संदेह को बढ़ाएगा अत: बिन्दुवार विस्तृत प्रतिउत्तर देना अब सरकार की जिम्मेदारी है। मेरा देश के न्यायालयों से विनम्र अनुरोध है कि वो स्वप्रेरणा से संज्ञान लें तथा सरकारों से बिन्दुवार जवाब मांगें, आज देश का अस्तित्व न्यायपालिका की सक्रियता पर निर्भर हो गया है। देश के वकील समुदाय से भी अपील है कि वो इस मामले को लेकर न्यायालय की शरण ले अन्यथा याद रखिए कि ये देश ना खत्म होने वाली गुलामी के कगार पर पहुँच चुका है।

 

शुभेच्छु!
अनिल यादव
बैस्ट रिपोर्टर न्यूज,जयपुर।
सत्पक्ष पत्रकार मंच,जयपुर
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